निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए।
(i) भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन करें। वर्ष 1960-61 से वन के अंतर्गत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसका क्या कारण है।
(ii) प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है?
Answers
उत्तर :
भारत में भूमि उपयोग का प्रारूप: भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किलोमीटर है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 93 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यत: चार रूपों में होता है:
क) कृषि ,ख) चारागाह ,ग) वन , (घ) उद्योग, यातायात ,व्यापार तथा मानव आवास।
क) कृषि : भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग कितने प्रतिशत भाग कृषि की जाती है। देश 46 % भूमि शुद्ध बोए क्षेत्र के अधीन है। 1% भाग फलों की कृषि के अंतर्गत आता है। 8 प्रतिशत क्षेत्र में परती भूमि है। परती भूमि से अभिप्राय उस सीमांत भूमि से है जिसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। अब खादों तथा उर्वरकों के प्रयोग के कारण परती भूमि का प्रतिशत कम हो रहा है। यदि परती भूमि को शुद्ध बोये गए क्षेत्र में मिला दिया जाए तो देश का 54 प्रतिशत क्षेत्र बोये गए क्षेत्र में आ जाएगा। देश के विभिन्न राज्यों में शुद्ध बोए गए क्षेत्र में बहुत भिन्नता पाई जाती है । पंजाब तथा हरियाणा का 80% से भी अधिक भाग शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। इसके विपरीत अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम ,अंडमान निकोबार दीप समूह तथा मणिपुर में शुद्ध बोया गया क्षेत्र 10% से भी कम है।
(ख) चरागाह : हमारे देश में चरागाहों का क्षेत्रफल बहुत ही कम है । यह कुल भूमि का केवल 4% ही है। फिर भी यहां संसार में सबसे अधिक पशु पाले जाते हैं। इन्हें प्राय: पुआल ,भूसा, तथा चारे की फसलों पर पाला जाता है। कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी पशु चराए जाते हैं, जिन्हें वन क्षेत्रों के अंतर्गत रखा गया है।
(ग) वन : हमारे देश में लगभग 22 प्रतिशत भूमि पर वन है। आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा पारिस्थितिक संतुलन के लिए देश के 33 प्रतिशत क्षेत्रफल का वनों के अधीन होना आवश्यक है । अंत: हमारे देश में वनक्षेत्र वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कम है।
(घ) उद्योग ,व्यापार ,परिवहन तथा मानव आवास : देश की शेष भूमि या तो बंजर है या उसका उपयोग उद्योग व्यापार परिवहन तथा मानव आवास के लिए किया जा रहा है । परंतु बढ़ती जनसंख्या तथा उच्च जीवन स्तर के कारण मानव आवास के लिए भूमि की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है।
परिणाम स्वरूप अन्य क्रियाकलापों के लिए भूमि का निरंतर अभाव होता जा रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में भूमि का स्पष्ट संतुलन नहीं है। अतः हमें भूमि के विभिन्न उपयोगों का संतुलन बनाए रखने के लिए कोशिश करनी चाहिए।
वनों के अधीन भूमि में कम वृद्धि : भारत में वनों के अधीन भूमि में अधिक वृद्धि न हो पाने का मुख्य कारण हमारी जनसंख्या में हो रही वृद्धि है। मानव आवास के लिए वनों का को काटा जाता है । कृषि योग्य भूमि प्राप्त करने के लिए भी वनों को साफ किया जाता है। ताकि बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन जुटाया जा सके।
(ii)
प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग निम्न प्रकार से हुआ है :
प्रौद्योगिक विकास :
मानव ने आज हर क्षेत्र में नई-नई तकनीकें खोज निकाली है । इनके फलस्वरूप उत्पादन की गति बढ़ गई है। आज उपभोग के प्रत्येक वस्तु का उत्पादन व्यापक स्तर पर होने लगा है। जनसंख्या में वृद्धि के साथ चार वस्तुओं की मांग भी बढ़ गई है। इसके अतिरिक्त उपभोग की प्रकृति भी बदल गई है। इसके अतिरिक्त उपभोग की प्रकृति भी बदल गई है । आज प्रत्येक उपभोक्ता पहली वस्तु को त्याग कर उसके स्थान पर उच्च कोटि की वस्तु का उपयोग करना चाहता है। इन सब के लिए अधिक से अधिक कच्चे माल की आवश्यकता पड़ती है। परिणाम स्वरूप हमारे संसाधनों पर बोझ बढ़ गया है।
आर्थिक विकास :
आज संसार में आर्थिक विकास की होड़ लगी हुई है। विकासशील राष्ट्र अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। इसके लिए वे अपने उद्योगों का विस्तार कर रहे हैं तथा परिवहन को बढ़ावा दे रहे हैं। इसका सीधा संबंध संसाधनों के उपभोग से ही है । दूसरी ओर विकसित राष्ट्र अपने आर्थिक विकास से प्राप्त धन दौलत में और अधिक वृद्धि करना चाहते हैं। यह वृद्धि संसाधनों के उपयोग से ही संभव है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका संसार के औसत से पांच गुना अधिक पेट्रोलियम का उपयोग करता है। अन्य विकसित देश भी पीछे नहीं है। सच तो यह है कि प्रौद्योगिकी तथा आर्थिक विकास अधिक से अधिक संसाधनों के उपभोग की जननी है।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।।
Answer:
उत्तर: भारत में भू उपयोग का प्रारूप:
स्थाई चारागाहों के अंतर्गत भूमि कम हो रही है, जिससे पशुओं के चरने में समस्या उत्पन्न होगी। शुद्ध बोये गये क्षेत्र का हिस्सा 54% से अधिक नहीं; यदि हम परती भूमि के अलावे भी अन्य भूमि शामिल कर लें।
शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र का प्रारूप एक राज्य से दूसरे राज्य में बदल जाता है। पंजाब में 80% क्षेत्र शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र के अंतर्गत आता है, वहीं अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और अंदमान निकोबार द्वीप समूह में यह घटकर 10% रह जाता है।
गैरकानूनी ढ़ंग से जंगल की कटाई और अन्य गतिविधियों (सड़क और भवन निर्माण), आदि के कारण वन क्षेत्र बढ़ने की बजाय कम हो रहा है। दूसरी ओर जंगल के आस पास एक बड़ी आबादी रहती है जो वन संपदा पर निर्भर रहती है। इन सब कारणों से वनों में ह्रास हो रहा है।