निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 25-30 शब्दों में लिखिए।
(क) कार्तिक मास से फागुन मास तक बालगोबिन भगत की दिनचर्या क्या होती थी? बालगोबिन भगत की इस बीच होने वाली गतिविधियों को
'बालगोबिन भगत' पाठ के आधार पर अपने शब्दों में लिखिए।
(ख) हालदार साहब ने नेताजी की मूर्ति पर नए-नए चश्मे लगाने वाले 'कैप्टन' के विषय में पहली बार क्या सोचा था? बाद में उन्हें 'कैप्टन' के
विषय में क्या जानकारी मिली? 'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(ग) 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ के आधार पर फ़ादर बुल्के की साहित्य साधना का परिचय दीजिए।
(घ) 'लखनवी अंदाज' पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक के ज्ञान चक्षु किस प्रकार खुल गए?
Answers
Answer:
1. सुबह अँधेरे में उठते। गाँव से दो मील नदी पर स्नान करने जाते थे। वापसी में गाँव के पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खंजड़ी बजाते हुए गीत गाते रहते थे।
2.हालदार साहब के मन में नेता जी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाले के प्रति आदर था। जब उन्हें पता चला कि चश्मा लगाने वाला कोई कैप्टन था तो उन्हें लगा कि वह नेता जी का कोई साथी होगा। परंतु पानवाला उसका मजाक उड़ाते हुए बोला कि वह एक लँगड़ा व्यक्ति है इसलिए वह फौज में कैसे जा सकता है।
Answer:
कार्तिक मास से फालुन मास तक बालगोबिन भगत सुबह समय क्या करते थे? ... वे गीत गाते समय अपने आस-पास के वातावरण को भूल जाते थे। उनमें माघ की सर्दी में भी गीत गाते समय इतनी उत्तेजना आ जाती थी कि उन्हें पसीना आने लगता था, परंतु सुनने वालों का शरीर ठंड के कारण कँपकँपा रहा होता था।
हालदार साहब के मन में कस्बे में घुसने से पहले ये खयाल आया कि वह नेताजी की मूर्ति की ओर नहीं देखेंगे क्योंकि सुभाषचन्द्र की उस मूर्ति पर चश्मा नहीं लगा था। मास्टर चश्मा बनाना भूल गया था और उस पर चश्मा लगाने वाला कैप्टन मर चुका था।
फादर बुल्के ने पहला अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश तैयार किया था। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे। ... उत्तर: फादर बुल्के के मन में अपने प्रियजनों के लिए असीम ममता और अपनत्व था। इसलिए लेखक ने फादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' कहा है।
यशपाल-लखनवी अन्दाज़ लेखक के किस बात से ज्ञान चक्षु खुल गए थे? नवाब साहब के बिना खीरा खाए, केवल सूँघकर उसकी महक और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार आ सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के लेखक की इच्छा मात्र से 'नई कहानी' क्यों नहीं बन सकती। इसी सोच ने लेखक के ज्ञान चक्षु खोल दिए।