★ निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर नोटबुक में लिखो।
प्र.1 'सागर ने रस्ता छोड़ा, परवत ने शीश झुकाया, साहिर ने ऐसा क्यों कहा है?
प्र. 2 'साथी हाथ बढ़ाना' से क्या आशय है? क्या आज भी इसकी आवश्यकता है?
प्र.3 कल गैरों की खातिर की, आज अपनी खातिर करना। इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
प्र. 4 साथी हाथ बढ़ाना कविता हमें क्या संदेश देती है?
Answers
Answer:
1. यह गीत किसको संबोधित है?
उत्तर:- यह गीत मजदूरों को संबोधित है।
2. इस गीत की किन पंक्तियों को तुम अपने आसपास की ज़िंदगी में घटते हुए देख सकते हो?
उत्तर:- साथी हाथ बढाना
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना
साथी हाथ बढाना।
हम मेहनत वालों ने जब भी, मिलकर कदम बढाया
सागर ने रस्ता छोडा, परबत ने सीस झुकाया
फौलादी हैं सीने अपने, फौलादी हैं बाँहें
हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें
उपर्युक्त पंक्तियों को हम अपने आसपास के श्रमिक वर्ग की ज़िंदगी में घटते हुए देख सकते हैं। गीत की इन पंक्तियों में कवि बताते है कि अकेला व्यक्ति अगर कुछ पाने का प्रयास करे तो थक जाता है परंतु अगर सब मिल-जुलकर के कार्य करे तो बड़े से बड़े लक्ष्य तक आसानी से पहुँच सकते हैं।
3. ‘सागर ने रस्ता छोड़ा, परबत ने सीस झुकाया’ – साहिर ने ऐसा क्यों कहा है? लिखो।
उत्तर:- ‘सागर ने रस्ता छोडा, परबत ने सीस झुकाया’ – इन पंक्तियों द्वारा साहिर जी ने मनुष्य के साहस और हिम्मत को दर्शाया हैं। यदि मेहनत करने वाले मिलकर कदम बढ़ाते हैं तो समुद्र भी उनके लिए रास्ता छोड़ देता है, पर्वत भी उनके समक्ष झुक जाते हैं अर्थात् आने वाली बाधाएँ स्वयं ही टल जाती हैं। इसी हिम्मत के कारण मनुष्य पर्वत को काटकर मार्ग बना पाया, सागर में पुलों का निर्माण कर पाया, चाँद तक पहुँच गया।
4. गीत में सीने और बाँह को फ़ौलादी क्यों कहा गया है?
उत्तर:- मजबूत इच्छाशक्ति के लिए मजबूत सीना आवश्यक है और इन कार्यों को पूरा करने के लिए मजबूत हाथ आवश्यक है। इसलिए कवि ने इस गीत में मजदूर के सीने और बाँह को फ़ौलादी कहा है।