निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए: (क) ‘बलागोबिन भगत’ पाठ में किन सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है? (ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी शिक्षा-प्रणाली में संशोधन की बात क्यों करते हैं? (ग) ‘काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्लाखां’ एक-दूसरे के पूरक हैं, - कथन का क्या आशय है? (घ) वर्तमान समाज को ‘संस्कृति’ कहा जा सकता है या ‘सभ्य’? तर्क सहित उत्तर दीजिए|
Answers
(क)
‘बाल गोविंद भगत’ पाठ में समाज की अनेक तरह की रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है। जैसे समाज में एक मान्यता व्याप्त कि बेटा ही अपने पिता या पुत्र को मुखाग्नि दे सकता है, लेकिन बाल गोविंद ने इस मान्यता के विरुद्ध जाकर अपने बेटे की चिता को अपनी बहू से मुखाग्नि दिलवाई। जब उनके बेटे की मृत्यु हो गई तो वह उसके बाद दुखी होने के बजाय उन्होंने समाज के विरुद्ध जाकर अपनी बहू के पुनर्विवाह करने की अनुमति भी दे दी। ये एक सामाजिक रुढि पर प्रहार था जहां विधवा-विवाह को बुरा समझा जाता था। इस तरह लेखक ने बालगोबिन पाठ के माध्यम से उस दौर में व्याप्त अनेक तरह की सामाजिक बुराइयों पर तीखा प्रहार किया है।
(ख)
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी स्त्रियों को शिक्षित करना आवश्यक मानते हैं। उनके अनुसार यदि पहले के समय में स्त्रियों को शिक्षित नहीं किया जाता था तो उस समय समाज को शायद स्त्रियों के शिक्षित होने की इतनी जरूरत नहीं होती होगी। लेकिन आज का समय ऐसा नहीं है आज स्त्रियों को पुरुष के समान शिक्षित होने की आवश्यकता है।
लेखक के अनुसार ऐसी शिक्षा प्रणाली जो स्त्रियों को शिक्षा करने से रोकती है, उस प्रणाली को बदला जाना चाहिए।
(ग)
काशी का विश्वनाथ धाम एक बेहद प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां पर बिस्मिल्लाह खान शहनाई बजाने के लिए प्रसिद्ध थे। रमेश बिस्मिल्लाह खान ने संगीत की शिक्षा-दीक्षा काशी की गलियों में ही प्राप्त की है। बिस्मिल्लाह का काशी से पुराना नाता रहा है। वह हर तरह के मजहबी कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति देते थे।
एक मुस्लिम होकर भी वह हनुमान जयंती के अवसर पर अपनी शहनाई की धुन से सबको मोह लेते थे। वह धर्म में भेद नहीं करते थे। काशी का विश्वनाथ मंदिर बिसमिल्लाह खान की शहनाई वादन के लिये प्रसिद्ध रहा है। इसी कारण काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्लाह खान दोनों को एक दूसरे का पूरक माना गया है।
(घ)
वर्तमान समय को सभ्य कहा जा सकता है, क्योंकि पहले के समय में जितने भी अविष्कार हुए थे, उन्हें संस्कृति कहा गया था। वर्तमान समय में हम चाहें उसमें कितना ही सुधार कर लें लेकिन हम संस्कृति नही कहला सकते। इसलिये वर्तमान समय को हम सभ्य कह सकते हैं।
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