निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें
(क) सुपोषण (यूट्रोफिकेशन)
(ख) जैव आवर्धन (बायोलॉजिकल मैग्निफिकेशन)
(ग) भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनपूर्ति के तरीके
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(क) सुपोषण (यूट्रोफिकेशन)
अपमार्जक तथा वाहित मल के कारण जल स्रोत में पोषक पदार्थों की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। इस कारण जल स्रोत उथले हो जाते हैं तथा सतही शैवालों में तीव्र वृद्धि होने लगती है , जिस कारण संपूर्ण जल सतह शैवालों से ढक जाती है। इस अवस्था को सुपोषिता या सुपोषण कहते हैं तथा शैवालों की तीव्र वृद्धि जल पुष्पन कहलाती है । इन शैवालों के कारण कार्बनिक पदार्थ का अपघटन होता है तथा जल स्रोत में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिस कारण जलीय जीव मर जाते हैं।
उदाहरण : जलीय खरपतवार , बंगाल का आतंक; हायसिंधि या जलकुंभी।
(ख) जैव आवर्धन (बायोलॉजिकल मैग्निफिकेशन) :
कृषि में प्रयुक्त रसायन तथा उर्वरक एक एवं अनेक भारी धातुएं जल के साथ बहकर जल स्रोतों में आ जाते हैं। यह है अवक्षयकारी तत्व जल स्रोत से पारितंत्र की खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं। इस हानिकारक जैव-अनिमनीकृत तत्वों के खाद्य श्रृंखला में निरंतर ऊपर की ओर बढ़ने पर क्रमिक तौर पर जीवों में इनकी सांद्रता का स्तर बढ़ता है, इस घटना को जैव आवर्धन कहते हैं।
इस हानिकारक तत्वों की सांद्रता खाद्य श्रृंखला के निचले स्तर में नगण्य होती है, किन्तु सर्वोच्च उपभोक्ता तक पहुंचने पर इनकी सांद्रता कई सौ गुना बढ़ जाती है, जो उस जीव के लिए हानिकारक होती है । इसका सर्वोत्तम उदाहरण DDT तथा BHC का तालाब से बाज तक पहुंचना है । इन रसायनों के कारण जीव के प्रजनन दर , आयु तथा कैल्शियम उपापचय जिसके कारण अंड कवच बनते हैं, प्रभावित होते हैं। इस कारण इनके अंड कवच पतले ही रह जाते हैं तथा शिशु अपरिपक्व अवस्था में ही मर जाते हैं।
(ग) भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनपूर्ति के तरीके :
पूरे विश्व में जनसंख्या बढ़ने के साथ शुद्ध जल का उपयोग भी काफी गुना बढ़ गया है। इस जल का प्राकृतिक रूप से पुनर्भरण हो सकता है, किंतु उसे भी समय चाहिए होता है। वर्तमान में कृषि में जल की अधिक आवश्यकता के साथ ही साथ करोड़ों लोग एक बड़े शहर में इकट्ठे रहते हैं व उन सभी की जल की आवश्यकता पूरी करने के लिए भूमि के जल का उपयोग किया जाता है जिसे भूजल स्तर गिर रहा है। इसके अलावा जो स्वच्छ जल स्रोत उपलब्ध है इसमें प्रदूषण के कारण कमी आ गई है। अतः सरकारों को जनता को जलापूर्ति करने हेतु भूजल पर निर्भर रहना पड़ता है।
भूजल का स्तर बढ़ाने के लिए ड्रिप- सिंचाई को बढ़ावा देना चाहिए एवं ऐसी फसलें व पादप लगानी चाहिए या अनुवांशिक अभियंत्रिकी के द्वारा ऐसे पादप करने चाहिए, जो कम जल की उपलब्धता में भी अपना जीवनयापन सरलता से कर सकें। वर्षा का जल टैंकों में इकट्ठा करने से भी भूजल पर कम दबाव पड़ेगा। इसके अलावा, जो स्वच्छ जल की झीलें हैं, उनके आसपास उद्योग नहीं लगाने चाहिए एवं यदि लगे हुए हैं, तब उनमें ऐसे साधन होने चाहिए कि वे जल को प्रदूषित न कर सके।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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कॉलम अ और व में दिए गए मदों का मिलान करें
कॉलम 'अ' कॉलम 'ब'
(क) उत्प्रेरक परिवर्तक 1. कणकीय पदार्थ
(ख) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र 2. कार्बन मोनो ऑक्साइड और
(इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर) नाइट्रोजन ऑक्साइड
(ग) कर्णमफ (इयर मफ्स) 3. उच्च शोर स्तर
(घ) लैंडफिल 4. ठोस अपशिष्ट
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Explanation:
सुपोषण —
- सुपोषण से तात्पर्य है, पोषण करना है। पर्यावरण या जलीय स्रोतों के संबंध में सुपोषण से तात्पर्य किसी जलाशय यानी जल स्रोत को पोषक तत्वों से समृद्ध करना ही सुपोषण कहलाता हैय़ सुपोषण की इस प्रक्रिया में जल स्रोतों में पौधों तथा शैवालों का विकास किया जाता है।
जैविक आवर्धन :
- जैविक आवर्धन से तात्पर्य विषैले एवं हानिकारक रसायनों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश होना एवं पोषीय स्तर के साथ बढ़ते जाना है।