History, asked by maahira17, 10 months ago

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में) जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।

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Answered by nikitasingh79
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जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा :  

जाति व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन;  

अलबरूनी ने भारतीय जाति व्यवस्था को अन्य समुदाय में प्रचलित प्रति रूपों के माध्यम से समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया है। अल-बिरूनी ने लिखा कि प्राचीन फारस में 4 सामाजिक वर्गों की मान्यता थी जैसे घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, अनुष्ठानिक पुरोहित एवं चिकित्सक वर्ग , खगोलशास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक वर्ग और अंत में कृषक वर्ग। इस प्रकार वह यह बताना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग विभाजन केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि इस्लाम में भी समानता के सिद्धांत के बावजूद धार्मिकता के पालन में भिन्नता थी।

जाति व्यवस्था प्रकृति के विरुद्ध :  

जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानते थे पर इसके बावजूद, अलबरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार कर दिया। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में शामिल अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के खिलाफ थी।

मूल्यांकन :  

जाति व्यवस्था के विषय में अलबरूनी का विवरण पूरी तरह से संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन की गहनता से प्रभावित था। बर्नियर के नियम के अनुसार , सबसे ऊंची जाति ब्राह्मणों की है। इन ग्रंथों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति व्यवस्था को संचालित करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था, लेकिन वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी भी कड़ी नहीं थी । उदाहरण स्वरूप  अत्यंज नामक श्रेणियों से सामान्यतया यह अपेक्षा की जाती थी कि वे किसानों और जमीदारों के लिए सस्ता श्रम उपलब्ध करें। हालांकि ये अक्सर प्रताड़ना का शिकार होते थे , फिर भी इन्हें आर्थिक तंत्र में शामिल किया जाता था।  

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

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Answered by bhatiamona
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निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में) जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।

उतर : अल बिरूनी अरब के प्रसिद्ध लेखकों में से एक था, उसने अपनी अनेक पुस्तकों में भारत के विषय में विस्तार से वर्णन किया है। उसकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक ‘किताब-उल-हिंद’ जिसे ‘तहकीक-ए-हिंद’ के नाम से भी जाना जाता है। इस पुस्तक के माध्यम से उसने भारत की सामाजिक दशा, भारत के रीति रिवाज, खानपान, भारत की वेशभूषा, आदि के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया है।

जाति व्यवस्था —

अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था का वर्णन करते हुए लिखा है कि भारत के समाज में सबसे ऊंची जाति ब्राह्मणों की मानी जाती थी। जिसमें हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मणों की उत्पत्ति ब्रह्मा के सिर से हुई और सिर शरीर का सबसे ऊपरी भाग है। इसलिए ब्राह्मण सबसे उत्तम हैं। दूसरे स्थान की जाति क्षत्रियों की है, जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के कंधों से हुई और उनका स्थान ब्राह्मणों से बहुत ज्यादा नीचे नहीं है। उसके बाद वैश्य आते हैं, जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा की जांघो से हुई है।

जाति व्यवस्था में उनका स्थान तीसरे स्थान पर है। सबसे अंतिम स्थान पर शूद्र आते हैं, जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के चरणों से हुई है। आखिर के दो वर्गों में कोई बहुत अधिक अंतर नहीं है और प्रथम वर्ग दो वर्गों में भी बहुत अधिक अंतर नहीं है।

अलबिरूनी ने भारतीय जाति व्यवस्था की तुलना फारस की प्राचीन सामाजिक व्यवस्था से करते हुए लिखा है कि भारत की जाति व्यवस्था के समान ही सामाजिक वर्गों की व्यवस्था प्राचीन फारस में भी थी। उसने फारस की सामाजिक व्यवस्था के बारे में बताया है कि प्राचीन फारस में घुड़सवार एवं शासक वर्ग, भिक्षु, अनुष्ठानिक पुरोहित और चिकित्सक वर्ग, खगोल शास्त्री एवं वैज्ञानिक वर्ग और चौथा वर्ग किसान एवं शिल्प कारों का ये चार वर्ग अस्तित्व थे। इस तरह अल बिरूनी ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे और इस्लाम में सबको समान समझा जाता था। उनमें भिन्नता केवल धार्मिकता का पालन करने के आधार पर होती थी।

पवित्रता की मान्यता को अस्वीकार करते हुए अलबरूनी ने जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को स्वीकार तो किया है लेकिन पवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया है। उसका कहना था कि प्रत्येक वस्तु जो अपवित्र हो जाती है वह अपनी पवित्रता वाली स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करती है और उसमें सफल भी होती है। उसने सूर्य हवा को शुद्ध करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है, का उदाहरण देते हुए अपने तर्क को स्पष्ट किया है। उसके अनुसार यदि ऐसा ना होता तो पृथ्वी पर जीवन ही संभव नहीं हो पाता। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में समाई हुई अपवित्रता की अवधारणा प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध थी।

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