History, asked by maahira17, 10 months ago

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में) चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुननिर्मित करने में सक्षम करता है?

Answers

Answered by nikitasingh79
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बर्नियर का वृत्तांत निम्न सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुननिर्मित करने में सक्षम करता है इसका विवरण निम्नलिखित है :  

  • बर्नियर ने भारत के ग्रामीण समाज का चित्रण ग्रामीण अंचल नामक अपने वृत्तांत में किया है, जिसके अनुसार भारत के विशाल ग्रामीण अंचलों में अधिकांश भूमि रेतीली और बंजर थी, जिसके कारण यहां खेती अच्छे से नहीं हो पाती थी, जिससे यहां घनी जनसंख्या का भी अभाव था।
  • इन क्षेत्रों में गवर्नरों के क्रूर एवं शोषणपूर्ण व्यवहार के कारण अनेक श्रमिक मर जाते थे अथवा दूसरी जगह पलायन कर जाते थे, जिसके फलस्वरूप कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग श्रमिकों के अभाव के कारण कृषि विहीन रह जाता था।  
  • निजी भूमि स्वामित्व का अभाव पाया जाता था, जिससे उत्पादन का स्तर गिरता  गया। उत्पादन का निम्न स्तर और शोषण पूर्ण व्यवहार के कारण समाज में केवल दो ही वर्ग थे ,एक सबसे अमीर और दूसरा सबसे गरीब।

अतः इस प्रकार बर्नियर द्वारा भारतीय ग्रामीण समाज का विवरण समकालीन ग्रामीण समाज के पुनर्निर्माण में इतिहासकारों की अधिक सहायता नहीं करता है। इसका कारण यह है कि बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परंपरा से संबंधित था और उसने भारत में जो भी देखा ,वह उसकी तुलना तथा भिन्नता यूरोप से करता था। ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस तुलनात्मक अध्ययन के प्रति अधिक चिंतित था । इसके अतिरिक्त उसका विचार नीति निर्माताओं तथा बुद्धिजीवी वर्ग को प्रभावित करने का था । इस प्रकार उसके द्वारा दिया गया विवरण 'द्वि-विपरीतता' के नमूने पर आधारित था ,जहां भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया गया है, जिससे भारत पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो। इस प्रकार बर्नियर द्वारा दिया गया विवरण दोषपूर्ण है।

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

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Answered by bhatiamona
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निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में) चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुननिर्मित करने में सक्षम करता है?

उत्तर-  बर्नियर एक यूरोपीय यात्री था, जिसने अपने यात्रा वृतांत में भारतीय समाज के बारे में काफी कुछ लिखा है, जिसका विवरण इस प्रकार है...

बर्नियर के अनुसार भारत में ग्रामीण इलाकों में केवल रेतीली जमीन और बंजर पहाड़ ही है। यहां खेती का स्तर अच्छा नहीं है और इन क्षेत्रों की जनसंख्या भी कम है।

बर्नियर को लगता है कि खेती योग्य जमीन का हिस्सा मजदूरों के अभाव में खेतीविहीन रह जाता है।

जमीन के स्वामी लालची प्रवृत्ति के हैं और वे लोग गरीब किसानों पर अत्याचार करते हैं, जिससे गरीब किसान निराश होकर गांव छोड़ कर चले जाते हैं।

हालांकि बर्नियर के यह वृत्तांत एकपक्षीय है, क्योंकि बर्नियर ने केवल यूरोपीय हित को ध्यान में रखते हुए ही भारतीय समाज को अत्यंत पिछड़ा दिखाने की कोशिश की है।

बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच सबसे बड़ी भिन्नता में एक प्रमुख है भारत में भूमि के निजी स्वामित्व का अभाव। उसके अनुसार भूमि पर राजकीय स्वामित्व से राज्य तथा उसके निवासी दोनों के लिए हानि होती है।

इस प्रकार कोई भी इतिहासकार अगर बर्नियर के वृत्तांत को पड़ेगा तो उसके मन में यही निष्कर्ष निकलेगा कि भारतीय समाज अत्यंत पिछड़ा हुआ है और भारत के गांव बेहद पिछड़े हुए हैं। यहाँ ये जरूरी है कि इतिहासकार अन्य तुलनात्मक स्रोतों के माध्यम से भी जानकारी प्राप्त करें और सभी स्रोतों का तुलनात्मक अध्ययन करके सही स्थिति का आकलन करें।

इसी कदम पर आगे बढ़ते हुए इतिहासकार समकालीन ग्राम समाज को समझ सकता है, वह जब सारे स्रोतों का सही रूप से मूल्यांकन कर लेगा और अन्य स्रोतों का भी अध्ययन कर सभी स्रोतों का तुलनात्मक अध्ययन करेगा तब तत्कालीन समाज की स्थिति को अच्छी तरह समझ सकता है।

इसलिए बर्नियर का वृतांत हमें समकालीन इतिहास को समझने के लिए रास्ता तो दिखाता है, लेकिन हमें उसके वृतांत की कमियों के प्रति भी सचेत रहना होगा, ताकि हम एक निष्पक्ष एवं सही मूल्यांकन कर सकें।

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