निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में) आपके मुताबिक कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने में जाति किस हद तक एक कारक थी?
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कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने में जाति के प्रभाव को हम निम्नलिखित तरीके से समझ सकते हैं :
सामाजिक संबंधों पर जाति का प्रभाव :
- उच्च जाति और निम्न जाति जैसे भेदभावों के कारण खेतिहर किसान कई तरह के समूह में बंटे थे।
- खेती योग्य जमीन होने के बावजूद कुछ निम्न जातियों को निम्न स्तर वाले कार्य ही दिए जाते थे।
- जाति का प्रभाव मुस्लिम समुदाय पर भी था । इनमें 'हलालखोरान' नामक जाति को नीच समझा जाता था तथा उन्हें गांव से बाहर रहने को विवश किया जाता था।
- निचली जातियों को उच्च वर्णों की जातियों की अपेक्षा समुचित न्याय नहीं मिल पाता था, जिसके कारण इस जाति के लोग हमेशा से विद्रोहात्मक भावना लिए रहते थे।
- वैवाहिक संबंध अपनी जाति के साथ करने होते थे, अन्यथा इसके लिए न्यायिक दंड दिया जाता था ; जैसे समुदाय से बहिष्कृत कर देना आदि।
- जातियों के एक समूह में रहने के कारण इनकी अपनी एक जातिगत पंचायत बन गई, जिसका निर्णय राज्य भी मानता था , केवल फौजदारी न्याय में इसके द्वारा दिए फैसले को राज्य अस्वीकार करता था।
आर्थिक संबंधों पर जाति का प्रभाव :
- निम्न जातियों को कृषि कार्यों में नहीं लगाया जाता था । यदि वे कृषि कार्य करते भी थे तो केवल मजदूर बनकर। इससे इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर रहती थी।
- कृषि उत्पादन में लाभ तथा फसलों के व्यवसायीकरण के कारण विभिन्न जातियां कृषि क्षेत्र में आने लगी। उदाहरण के लिए 'सदगोय' व 'कैवर्त' जाति। पशुपालन तथा बागवानी में बढ़ते लाभ की वजह से विभिन्न जातियां समाजिक सीढ़ी से ऊपर उठीं। पूर्वी क्षेत्र में पशुपालक और मछुआरे किसानों के जैसी सामाजिक स्थिति पाने लगे । बढ़ते लाभ के कारण नई-नई जमींदारियां बढ़ने लगी और समाज में एक नए बर्जुआ वर्ग का जन्म हुआ।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से संबंधित थी।
- ग्राम कृषक समाज की मौलिक इकाई था।
- किसान ग्रामों में रहकर कृषि कार्य करते थे।
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