निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में) इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत-सी ज़मींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई?
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इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत-सी ज़मींदारियाँ नीलाम कर दी गई जिसके पीछे निम्नलिखित कारक उत्तरदाई थे -
- बंगाल के गांवों की अर्थव्यवस्था मुश्किल के दौर से गुजर रही थी । यहां बार-बार अकाल पड़ रहे थे और खेती की पैदावार कम होती जा रही थी । ऐसे में रैयतों का नियमित रूप से राजस्व न दिए जाने के कारण जमींदारों के पास देर राशियों की कमी होती जा रही थी । राजस्व अदा न करने की स्थिति में जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी।
- शुरुआती राजस्व की मांग की दर काफी ऊंची थी । राजस्व संपूर्ण समय के लिए निर्धारित किया जा रहा था , जिसके कारण आगे चलकर जमीदारों तथा कृषि में विस्तार होने से जो आय में वृद्धि होती उस पर अतिरिक्त राजस्व नहीं लगाया जा सकता था, इसलिए कंपनी ने राजस्व को काफी उच्च स्तर पर रखा, जिसका भुगतान जमींदार समय पर नहीं कर पाए, इसलिए में जमींदारियां नीलाम कर दी गई।
- इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा 'सूर्यास्त का कानून' लगाया गया । इस कानून के अंतर्गत जमींदारों को राजस्व चुकाने के अंतिम दिन के सूर्यास्त होने से पहले राजस्व चुकाना पड़ता था, लेकिन जमींदार इस समय तक राजस्व अदा नहीं कर पाते थे , जिस कारण जमींदारियां नीलम कर दी जाती थी।
- रैयत लोग जमींदार को अपना राजा तथा स्वयं को उसकी प्रजा मानते थे ,जिस कारण कुछ उदार जमींदार राजस्व वसूली में नरमी बरता करते थे, जिससे उनको सही वक्त पर राजस्व नहीं मिल पाता था । राजस्व नहीं मिलने पर ये आगे कंपनी सरकार को देय राशि नहीं जमा कर पाते थे , जिसके कारण इनकी जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी।
- जोतदार लोग भी अक्सर रैयतों द्वारा राजस्व चुकाने में देरी करवा देते थे, जिससे जमींदार को सही वक्त पर राजस्व नहीं मिल पाता था और राजस्व नहीं जमा करने की स्थिति में जमींदारियां नीलाम कर दी जाती थी।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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सन 1793 ईस्वी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस ने भू राजस्व की वसूली के लिए एक नई तरह की पद्धति का प्रचलन शुरू किया, जिसे स्थाई बंदोबस्त या जमीदारी प्रथा अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त के नाम से जाना जाता है। इस पद्धति में जमीदार सरकार को जो लगान देते थे, उसकी राशि स्थाई रूप से निश्चित कर दी गई और जमीदार द्वारा लगान की निर्धारित राशि का भुगतान सरकार को न करने पर उसकी जमीन का कुछ भाग बेचकर सरकार यह बकाया लगान वसूल कर सकती थी। इस्तमरारी बंदोबस्त जब लागू हो गया तो बहुत सी जमीदारियां नीलाम की जाने लगीं, इसके अनेक कारण थे....
- कंपनी द्वारा निर्धारित किया गया प्रारंभिक राजस्व बहुत अधिक था। इस्तमरारी बंदोबस्त के अंतर्गत राजस्व मांग का निर्धारण स्थाई होने वाला था। इसका मतलब यह था कि आने वाले समय में यदि कृषि में विस्तार हुआ और मूल्यों में वृद्धि होती तो भी कंपनी को कोई लाभ नहीं मिलने वाला था। इस भविष्य में होने वाली हानि को कम करने के लिए कंपनी जो राजस्व स्थाई रूप से निर्धारित करना चाहती थी, उसकी मांग को सबसे ऊंचे स्तर पर रखना चाहती थी।
- कंपनी के अधिकारियों का सोचना था कि यदि कृषि उत्पादन और मूल्यों में होने वाली वृद्धि के कारण जमीदारों पर धीरे-धीरे राजस्व की मांग का बोझ कम होता जाएगा और बाद में उन्हें भू-राजस्व भुगतान में कठिनाई नहीं होगी, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया और जमींदारों के लिए बेहद बढ़े हुए राजस्व का भुगतान करना भारी पड़ गया।
- भू-राजस्व की ऊंची मांग कर निर्धारण 1790 के दशक में किया गया था, जब समय कृषि उत्पादों के मूल्य में काफी कमी थी, इसके कारण किसानों द्वारा जमीदारों को उनके लिए देने वाली राशि का भुगतान करना काफी कठिन हो गया था और जमींदार रैयतों से राजस्व इकट्ठा नहीं कर पाता और कंपनी को अपनी राशि का भुगतान नहीं कर पाता था।
- राजस्व एक स्थाई व्यवस्था थी, इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता था। उत्पादन चाहे अधिक हो या बहुत कम राजस्व का भुगतान ठीक समय पर करना होता था। इस संबंध में सूर्यास्त कानून का पालन किया जाता। इसके अनुसार यदि निश्चित तारीख को सूर्यास्त तक भुगतान नहीं किया गया तो अगले दिन जमीदारों की संपत्ति को नीलाम किया जा सकता था।
- इस्तमरारी बंदोबस्त के अंतर्गत जमीदारों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर उनकी सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया गया और जमीदार जो सीमा शुल्क वसूल करते थे वह अधिकार भी समाप्त उनसे छीन लिया गया। उन्हें स्थानीय न्याय करने की व्यवस्था से भी वंचित कर दिया गया और ना ही स्थानीय पुलिस पर उनका कोई नियंत्रण रहा। इसके कारण अब जमीदार राजस्व वसूली में शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते थे। जमींदरा राजस्व वसूली के समय कभी-कभी जानबूझकर सही समय पर कंपनी को राजस्व का भुगतान नहीं करते। क्योंकि उनकी संपत्ति के नीलाम होने की स्थिति में वह अपने ही किसी आदमी द्वारा बोली लगाकर उस संपत्ति को दोबारा हासिल कर लेते और उन्हें राजस्व के रूप में पहले से कहीं कम राजस्व राशि का भुगतान करना पड़ता था।
- रैयत भी कभी-कभी मजबूरीवश या कभी-कभी जानबूझकर राजस्व का भुगतान जमीदारों को नहीं करते। इससे जमीदार भी कंपनी को ठीक समय पर राजस्व का भुगतान नहीं कर पाते और उनकी जमीदारी नीलामी हो जाती।
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