निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में) अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
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अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को निम्न प्रकार प्रभावित किया :
- अमेरिकी गृह युद्ध आरंभ होने से कपास की कीमतों में वृद्धि हुई, जिसके कारण कपास की मांग भारत में भी बढ़ गई। इससे किसानों को अच्छा पैसा मिला तथा उनकी आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हुआ। कपास में तेजी आने से मुंबई के व्यापारियों द्वारा ज्यादा लाभ कमाने के लिए तथा कपास की खेती के लिए रैयतों को प्रोत्साहन दिया जाने लगा , जिससे कृषकों को भारी मात्रा में ऋण मिलने लगा। इन ऋणों में ज्यादातर ऋण दीर्घकालीन था।
- ऋणों की प्राप्ति से रैयतों की खेती के सामान जैसे- हल, बीज , बैल इत्यादि खरीदने में आसानी हो गई। सामानों की प्रचुरता से उत्पादन में वृद्धि हुई, जिसका लाभ कृषकों के साथ-साथ सब व्यापारियों को भी मिला।
- कपास उगाए जाने वाली जमीनों पर एक 1 एकड़ के लिए ₹100 तक का ऋण व्यापारियों द्वारा दिया जाने लगा। इससे उत्पादन में तो सुधार हुआ ही साथ साथ कृषकों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ। कुछ बड़े वर्ग के लोग तक बड़े किसान छोटे किसानों की अपेक्षा ज्यादा लाभ अर्जित करने में कामयाब रहे थे।
- कुछ छोटे स्तर के किसान जिनके पास जमीनें कम थी उन लोगों ने अग्रिम राशियां तो ले ली, लेकिन उत्पादन की कमी के कारण इन लोगों पर ऋण का बोझ बढ़ता गया। अमेरिकी महायुद्ध समाप्त होते ही कपास की मांग में तेजी से गिरावट होने लगी , जिससे रैयतों की स्थिति खराब हो गई।
- जिन किसानों ने भारी अग्रिम राशियां ले रखी थी , उनके लिए और बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई थी । इन राशियों को चुकाने के लिए इन्हें साहूकारों तथा ऋणदाताओं के पास जाना पड़ा।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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अमेरिका के गृह युद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को निम्न तरह से प्रभावित किया...
- जब सन 1861 में अमेरिका में गृह युद्ध छिड़ गया तो अमेरिका से ब्रिटेन के लिए की जाने वाली कपास की आपूर्ति में भारी गिरावट आ गई।
- ब्रिटेन में खपत होने वाली वक्त तीन चौथाई कपास अमेरिका से ही आयात की जाती थी, ऐसे में ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता अमेरिकी कपास पर निर्भर थे। अमेरिका में गृहयुद्ध के कारण कपास की आपूर्ति प्रभावित हुई तो ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता ऐसे नए क्षेत्रों की तलाश में जुट गए जहां पर उन्हें पर्याप्त मात्रा में कपास मिल सके।
- ऐसे में उन्होंने भारत की तरफ रुख किया, क्योंकि भारत की भूमि और जलवायु दोनों ही कपास की खेती के अनुकूल थे और यहां पर श्रम भी सस्ता था।
- 1861 में अमेरिकी गृहयुद्ध छिड़ जाने के कारण ब्रिटेन की तरफ से भारत में अधिक से अधिक कपास उत्पादन का निर्देश आया और कपास की कीमतों में अचानक उछाल आने लगा और भारतीय कपास की मांग बढ़ गई।
- भारतीय कपास की मांग बढ़ने के कारण रैयतों को भी आसानी से ऋण मिलने लगा। कपास की बढ़ती आपूर्ति के कारण दक्कन के क्षेत्रों में इसका काफी असर हुआ और दक्कन के गांव के खेतों को बिना किसी शर्त के ऋण उपलब्ध होने लगा।
- रैयतों कपास उत्पादन के लिए प्रति एकड़ भूमि के हिसाब से अग्रिम राशि भी दी जाने लगी। साहूकार भी उन्हें आसानी से दिल देने के लिए तैयार हो गए।
- जब तक अमेरिका में संकट बना रहा, तब तक तब तक भारत में बंबई, दक्कन आदि क्षेत्र में कपास का उत्पादन बढ़ता गया।
- 1960 से 1964 के बीच भारत में कपास का उत्पादन लगभग दोगुना हो चुका था। 1962 में तो अकेले भारत ही ब्रिटेन के लिये 90% कपास का निर्यात करता था।
- कपास के उत्पादन से केवल कुछ-कुछ कपास किसान को ही फायदा हुआ, जो पहले से धनी था, वे और अधिक समृद्ध हो गए लेकिन अधिकतर किसान अधिक उत्पादन के चक्कर में ऋण के बोझ तले दब गई।
- उन दिनों कपास की बढ़ती मांग के कारण भारत के कपास व्यापारी अमेरिका को स्थाई रूप से विस्थापित कर विश्व के कपास बाजार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के सपने देखने लगे।
- 1965 तक अमेरिका में युद्ध समाप्त हो चुका था और वहां पर कपास का उत्पादन पहले की तरह चालू हो गया और इस तरह अमेरिका से पर्याप्त मात्रा में कपास किया आपूर्ति होने के कारण ब्रिटेन की तरफ से भारतीय कपास की मांग में गिरावट आती चली गई।
- भारतीय कपास की घटती मांग देखकर साहूकार आदि भी रैयतों को ऋण देने के इच्छुक नहीं रहे और उन्होंने रैयतों से अपने कार्य व्यवहार को बंद कर दिया तथा अग्रिम राशियों पर रोक लगाकर अपने बकाया की मांग करनी शुरू कर दी। ऐसी स्थिति में दलितों की स्थिति और दयनीय बन गई।
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