History, asked by maahira17, 11 months ago

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए :
साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?

Answers

Answered by nikitasingh79
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साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से निम्न प्रकार तक सहायता मिलती है :  

सांची का स्तूप मूल रूप से बहुत धर्म से संबंधित है और इसकी स्थापत्य कला में चित्रित अनेक चित्र बौद्ध धर्म से संबंधित विषयों पर आधारित हैं, इसलिए साँची की मूर्तिकला को समझने के लिए बौद्ध साहित्य का ज्ञान आवश्यक है। इन ग्रंथों का अध्ययन से ही इस स्तूप की मूर्तियों में उल्लेखित मानवीय एवं सामाजिक जीवन के अनेक पहलुओं को आसानी से समझा जा सकता है।  

प्रथम दृष्टि में देखने पर ऐसा लगता है कि इस मूर्ति कला में फूस की झोपड़ी और पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य का चित्रांकन किया गया है। इतिहासकारों का मानना है कि सांची की मूर्तिकला वेसांतर जातक से लिया गया एक दृश्य है। कला इतिहासकारों को बौऐ मूर्तिकला को समझने के लिए बुद्ध के चरित्र लेखन को समझना आवश्यक है। आरंभिक इतिहासकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दर्शाकर, प्रतीकों के रूप में दर्शाया है।  

उदाहरण स्वरूप - रिक्त स्थान बुद्ध के ध्यान की दशा को, स्तूप महापरिनिर्वाण को तथा धर्म चक्र प्रथम उपदेश को दर्शाता है। बहुत सी ऐसी मूर्ति है जो सांची में उत्कीर्णित है, बुद्ध धर्म से सीधे संबंधित नहीं है । इनमें कुछ सुंदर स्त्रियां मूर्ति के रूप में उत्कीर्णित है , जो तोरण द्वार के किनारे एक पेड़ पकड़कर झूल रही हैं।  संस्कृत भाषा में इसे शालभंजिका मूर्ति कहा जाता है । वस्तुतः यह मूर्ति उर्वरता के प्रतीक के रूप में जानी जाती है। इस मूर्ति से स्पष्ट है कि जो लोग बौद्ध धर्म से आए उन्होंने बौद्ध धर्म को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सांची में कई जानवरों जैसे - हाथी, घोड़े, बंदर ,गाय बैल आदि की मूर्तियां उत्कीर्णित है। इन जानवरों का मनुष्य के गुणों के प्रतीक के रूप में वर्णन किया गया है।

उदाहरण स्वरुप हाथी को ज्ञान तथा शक्ति का प्रतीक माना जाता था । एक स्त्री पर हाथी द्वारा जल छिड़का जा रहा है, जो कि इतिहासकारों के अनुसार गजलक्ष्मी का प्रतीक या बुद्ध की माता 'माया' है।

यह सर्व विदित है कि गजलक्ष्मी को प्राय: हाथियों के साथ दिखाया जाता है। यही कारण है कि कुछ इतिहासकारों का मत है कि संभवत उपासक इसका संबंध माया और गजलक्ष्मी दोनों के साथ मानते हैं।श्रविद्वानों का मत है कि सांची की मूर्तियों में पाए जाने वाले अनेक प्रतीकों अथवा चिन्हों को भी लोक परंपराओं से लिया जाता है।  

जिस कला में प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है उसके अर्थ की व्याख्या अक्षरशः करने से प्रवेश करना चाहिए। उदाहरण के लिए बौद्ध मूर्तिकला में पेड़ का अर्थ केवल एक पेड़  मात्र से नहीं होता, बल्कि उसको बुद्ध के जीवन की विशिष्ट घटनाओं से जोड़कर देखा जाता है।

इसी प्रकार सांची के कई स्थानों पर सर्पों को दिखाया गया है। यह प्रतीक भी ऐसी ही लोक परंपराओं से उद्धत होता है , जिनको ग्रंथों में प्राय: उल्लेख मिलता है।  

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सांची की मूर्तिकला को समझने के लिए बौद्ध साहित्य का ज्ञान परम आवश्यक है।

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

इस पाठ  (विचारक, विश्वास और इमारतें ) के सभी प्रश्न उत्तर :  

https://brainly.in/question/15321044#

इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :

उत्तर दीजिए ( लगभग 100-150 शब्दों में ) आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते थे?

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उत्तर दीजिए ( लगभग 100-150 शब्दों में ) निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और जवाब दीजिए :

महाराजा हुविष्क (एक कुषाण शासक) के तैतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।

(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?

(ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?

(ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती हैं?

(घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रंथों को जानती थीं?

(ड.) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?  

https://brainly.in/question/15321271#

Answered by Anonymous
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Explanation:

न्हें तो बौद्ध परंपरा के ग्रंथों को पढ़े बिना समझा ही नहीं जा सकता।

  • साँची में कुछ एक प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बौद्ध वृक्ष के नीचे ज्ञान-प्राप्ति वाली घटना को प्रतीकों के रूप में दर्शाने का प्रयत्न किया है।

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