History, asked by maahira17, 11 months ago

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए :
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।

Answers

Answered by nikitasingh79
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वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा निम्न प्रकार से है :  

वैष्णववाद :  

इसके अंतर्गत विष्णु को सबसे महत्वपूर्ण देवता माना जाता था । वैष्णववाद में कई अवतारों की पूजा पद्धतियां विकसित हुए । वैष्णववाद के अंतर्गत विष्णु के 10 अवतारों की कल्पना की गई। यह माना जाता था कि दुष्टों के आतंक से सृष्टि त्रस्त हो जाती थी तभी भगवान विष्णु विभिन्न रूपों में अवतार लिया करते थे।

शैववाद :  

इसके अंतर्गत भगवान शिव को परमेश्वर माना जाता है। शैव उप संप्रदाय है - शाक्त, नाथ ,दशनामी आदि। शैववाद का मूल रूप ऋग्वेद से रूद्र की कल्पना में मिलता है। रूद्र के भयंकर रूप की अभिव्यक्ति वर्षा के पूर्व झंझावात के रूप में होती थी।  रुद्र का ही दूसरा सौम्य रूप 'शिव' जनमानस में स्थिर हो गया।

वैष्णववाद और शैववाद के  संबंध में मूर्ति कला का विकास :

वैष्णववाद में अवतारवाद की भावना को महत्व दिया गया है। इसमें विष्णु के अवतारों की पूजा पर विशेष बल दिया गया है। इसी कारण विष्णु के विभिन्न अवतारों कु अनेक मूर्तियां बनाई गई। विष्णु के साथ-साथ तत्कालीन अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण किया गया । शिव का चित्रण लिंग के रूप में किया गया। मूर्तिकला के अंतर्गत शिव के मनुष्य रूप की भी आकृति बनाई जाती थी। सभी चित्रणों का आधार देवी देवताओं से जुड़ी मिश्रित अवधारणाएं थी । देवी देवताओं की विशेषताओं एवं उनके प्रतीकों का चित्रांकन उनके शिरोवस्त्र ,आभूषणों, आयुक्तों और बैठने की मुद्रा के द्वारा किया जाता था।

वैष्णववाद और शैववाद के  संबंध में वास्तु कला का विकास :

वैष्णववाद और शैववाद के उदय को मंदिरों के माध्यम से दिखाया जाता था । विभिन्न मूर्तियों को जब एक ही स्थान पर स्थापित किया गया तो उसे मंदिर कहा गया। आरंभ में मंदिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे जिसे गर्भ ग्रह कहते थे । उपासकों की मूर्ति पूजा हेतु उसमें एक प्रवेश द्वार बनाया गया था। कालांतर में गर्भ ग्रह के ऊपर एक शिखर बनाया गया। मंदिर की दीवारों पर भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे। बाद के काल में मंदिरों के साथ विशाल सभा स्थल , ऊंची दीवारें तथा तोरण भी बनाए जाने लगे।

साथ ही जलापूर्ति का विशेष प्रबंध किया गया । लगभग ईसा पूर्व तीसरी सदी से ही पहाड़ों को काटकर कृत्रिम गुफा बनाई जाती थी । इसका सबसे विकसित रूप आठवीं सदी के कैलाश नाथ मंदिर में दृष्टिगोचर होता है, जहां पूरी पहाड़ी को काटकर एक मंदिर का रूप दिया गया।

निष्कर्ष :

उपरोक्त विवरण को आधार बनाकर यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वस्तुकला और मूर्तिकला के विकास ने उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया।

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

इस पाठ  (विचारक, विश्वास और इमारतें ) के सभी प्रश्न उत्तर :  

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Answered by Anonymous
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Explanation:

उपासकों की मूर्ति पूजा हेतु उसमें एक प्रवेश द्वार बनाया गया था।

  • कालांतर में गर्भ ग्रह के ऊपर एक शिखर बनाया गया।

  • मंदिर की दीवारों पर भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे।

  • बाद के काल में मंदिरों के साथ विशाल सभा स्थल , ऊंची दीवारें तथा तोरण भी बनाए जाने लगे।

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