निम्नलिखित पद्य पत्तियों को पढ़कर नचना के अनुसार कृती करो। कमीतैरते कमी हुपते, इतशते गाते महत्ताते नदी आ गई चलो नहाने आमीत सबको करवाते सी उपजियत भद्र जनों का, नदीमा से परिचय करपाता अपार हमारे मन में आता प्रटपट नदी पार कर जाता.
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अगदी (क्रि.वि.)—बिल्कुल
अगोदर (क्रि.वि.)—पहलेk
अग्रणी (सं.पु.)—अग्रगण्य
अचानक (क्रि.वि.)—अचानक
अचूक (वि.)—अचूक
अजिबात (क्रि.वि.)—जरा भी
अजोड (वि.)—बेजोड
अट्ठावन्न (वि.)—अट्ठावन
अडचण (सं.स्त्री.)—अड़चन, समस्या, कठिनाई
अडवणे (क्रि.)—विरोध करना
अडाणीपणा (सं.पु.)—अनाड़ीपन
अडीच (वि.)—ढ़ाई
अत्यवस्थ (वि.)—गंभीर रूप से बीमार
अत्यावश्यक (वि./क्रि.वि.)—बहुत जरूरी
अर्थात (अ.)—अर्थात, मतलब
अद्ययावत (वि.)—अद्यतन
अनुभव (सं.पु.)—अनुभव
अन्न (स.नपुं.)—खाना
अपघात (सं.पु.)—दुर्घटना
अपंगत्व (सं.पु.)—पंगुता
अभ्यास (सं.पु.)—पढ़ाई, अध्ययन
अर्धा (वि.)—आधा
अर्वाच्य (वि.)—जो बोलना नहीं चाहिए
अवघड (वि.)—कठिन
अवघडणे (क्रि.)—अकड जाना
अश्रू (सं.पु.)—आँसू
असणे (क्रि.)—होना
असाच (वि.)—ऐसे ही
अस्वस्थता (सं.स्त्री.)—बेचौनी
अहर्निश (क्रि.वि.)—दिनरात
अहवाल (सं.पु.)—रिपोर्ट
अहो (अव्यय/संबोधन)—अजी (पत्नी पति को ऐसे पुकारती है)
अंगठे बहाद्दर (वा.प्र.)—अंगूठा छाप
अंगण (सं.नपुं.)—आँगन
अंगभर (वि.)—तनभर
अंगात μोणे (वा.प्र.)—भूत लगना
अंगावर काटा उभा राहणे बदनपर रोंगटे खडे होना
आई (सं.स्त्री.)—माँ
आकर्षण (सं.नपुं.)—आकर्षण
आखणे (क्रि.)—बनाना
आखूड (वि.)—लंबाई में छोटा
आज (क्रि.वि.)—आज
आजकाल (क्रि.वि.)—आजकल
आजार (सं.पु.)—बीमारी
आजूबाजूला (क्रि.वि.)—आसपास
आजोबा (सं.पु.)—दादाजी, नानाजी
आठवण (सं.स्त्री.)—याद, स्मृति
आठवणे (क्रि.)—याद आना
आणखी (वि.)—और
आणणे (क्रि.)—लाना
आणि (अ.)—और
आत (परसर्ग)—अंदर
आता (क्रि.वि.)—अब, अभी, तुरंत
आत्मचरित्र (सं.नपुं.)—आत्मकथा
आत्मविश्वास (सं.पु.)—आत्मविश्वास
आदर (सं.पु.)—आदर, सम्मान
आदळणे (क्रि.)—जोर से गिरना
आधी (अ.)—पहले
आनंदात सामील होणे (वा.