निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए: हमारैं हरि हारिल की लकरी| मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी| जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री| सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी| सू तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी| यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपो, जिनके मन चकरी| (क) ‘हारिल की लकरी’ किसे कहा गया है और क्यों? (ख) ‘तिनहिं लै सौंपौं’ में किसकी और क्या संकेत किया गया है? (ग) गोपियों को योग कैसा लगा है? क्यों?
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Answer:
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(क)
गोपियां श्री कृष्ण के प्रति अपनी अटूट प्रेम को व्यक्त करती हुई उद्धव से कहती हैं कि श्रीकृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी के समान हो गए हैं। जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में सदैव लकड़ी को पकड़े रहता है, उसी तरह हम भी सदैव अपने मन में श्रीकृष्ण का ध्यान किए रहते हैं।
(ख)
जब उद्धव गोपियों को श्री कृष्ण के प्रति प्रेम भावना को छोड़कर योग को अपनाने की सलाह देते हैं, तो गोपियां उद्धव को उलाहना देते हुए कहती हैं कि आपकी योग की बातें हमारी समझ से परे हैं। आपके योग नामक रोग की हमें जरूरत नहीं है। आप अपने योग के ज्ञान को उन व्यक्तियों को दें, जिनका जिन का मन चंचल है और सदैव भटकता रहता है। हमारा मन चंचल नहीं है। हमारा मन तो अपने आराध्य श्री कृष्ण में ही लगा रहता है।
(ग)
गोपियों ने योग को अरुचिकर बताया है। उन्हें योग ककड़ी के समान कड़वा लगता है, जिसे खाकर निगला नहीं जा सकता। उद्धव द्वारा योग के संबंध में दी गई ज्ञानपूर्ण बातें उन्हें निरर्थक लगती हैं।
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