निम्नलिखित पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
शिल्पकला-कुमुदों की माला वक्षस्थल का हार हो,
फूल-फलों से हरी-भरी इस धरती का श्रृंगार हो।
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➲ ये पंक्तियाँ ‘डॉ. प्रकाश दीक्षित द्वारा रचित कविता ‘धरती का आँगन महके’ कविता की इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है...
शिल्पकला-कुमुदों की माला वक्षस्थल का हार हो,
फूल-फलों से हरी-भरी इस धरती का श्रृंगार हो।
भावार्थ ⦂ इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि हम सभी तरह की शिल्प कलाओं को अपनाएं और इससे उनका समुचित विकास हो। हमारी यह भूमि भी फलों से, फूलों से हरी-भरी रहे और सुसज्जित रहे हमारी। धरती का यह आंगन सदैव महकता रहे। फल-फूलों से इस धरती का हरा-भरा श्रृंगार होता रहे।
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