निम्नलिखित पद्यांश का हिन्दी अर्थ लिखिए।
दानेन पाणिः न तु कंकणेन, स्नानेन शुद्धिः न तु चन्दनेन।
मानेन तृप्तिः न तु भोजनेन, ज्ञानेन मुक्तिः न तु मुण्डनेन।।
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दान से ही हाथों की सुन्दरता है, न कि कंगन पहनने से, शरीर स्नान से ही शुद्ध होता है न कि चन्दन का लेप लगाने से, तृप्ति मान से होता है, न कि भोजन से, मोक्ष ज्ञान से मिलता है, न कि श्रृंगार से ।
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