:निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिपि
सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुर गान!
जगती के मन को खींच-खींच
निज छवि के रस से सींच-सींच
जल कन्याएँ भोली अजान,
सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुर गान!
प्रात: समीर से हो अधीर,
छूकर पल-पल उल्लासित तीर,
कुसुमावलि-सी पुलकित महान,
सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुर गान !
संध्या से पाकर रुचिर रंग
करती-सी शत सुर चाप भंग
हिलती नव तरु-दल के समान,
सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुर गान !
जल कन्याएँ भोली अजान,
सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुर गान !
(क) कवि नें जल कन्याएँ किन्हें कहा है, उनकी क्या विशेषताएँ हैं ?
(ख) लहरों का रंग सुंदर क्यों लग रहा है ?
(घ) लहरें किसके समान हिलती प्रतीत हो रही हैं ?
(ड.) सागर शब्द के दो पर्यायवाची लिखें।
Answers
Answer:
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
जगती के मन को खींच खींच
निज छवि के रस से सींच सींच
जल कन्यांएं भोली अजान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
प्रातः समीर से हो अधीर
छू कर पल पल उल्लसित तीर
कुसुमावली सी पुलकित महान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
संध्या से पा कर रुचिर रंग
करती सी शत सुर चाप भंग
हिलती नव तरु दल के समान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
करतल गत उस नभ की विभूति
पा कर शशि से सुषमानुभूति
तारावलि सी मृदु दीप्तिमान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
तन पर शोभित नीला दुकूल
है छिपे हृदय में भाव फूल
आकर्षित करती हुई ध्यान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
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Sager ki lahron ko kavi ne jal kanyaye kahi hai