Hindi, asked by kmohe9726, 10 months ago

निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
बढ़त-बढ़त संपति-सलिलु, मन-सरोजु बढ़ि जाइ ।
घटत-घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ ।।

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Answered by bhatiamona
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प्रसंग: प्रस्तुत  दोहे में कवि ने धन के बढ़ने पर मन पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया है|

व्याख्या :कवि का कथन है की धनरूपी जल के बढ़ जाने के साथ-साथ मनरूपी कमल भी चढ़ता चला जाता है, किंतु धनरूपी जल के घटने के साथ-साथ मनरूपी कमल नहीं घटता , अपितु समूल नष्ट हो जाता है ,अथार्त धन के बढ़ जाने पर मन की इच्छाएँ भी बढ़ जाती है , परंतु घन के घट जाने पर मन की इच्छाएँ नहीं घटती है| तब परिणाम यह होता है की मनुष्य यह सह नहीं पाता और दुःख से मरे हुए के समान हो जाता है| वह मानने के लिए तैयार नहीं होता और हमेशा दुःख में रहता है |

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निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—

वह कली के गर्म से फल रूप में, अरमान आया !

देख तो मीठा इरादा, किस तरह, सिर तान आया !

डालियों ने भूमि रुख लटका दिया फल, देख आली !

मस्तकों को दे रही संकेत कैसे, वृक्ष-डाली ।

फल दिये ? या सिर दिये ? तरु की कहानी–

गूँधकर युग में, बताती चल जवानी !

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