निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
ऐसा रण, राणा करता था,
पर उसको या सन्तोष नहीं ।
क्षण-क्षण आगे बढ़ता था वह,
पर कम होता था रोष नहीं ।।
कहता था लड़ता मान कहाँ,
मैं कर लूँ रक्त-स्नान कहाँ ?
जिस पर तय विजय हमारी है,
वह मुगलों का अभिमान कहाँ ?
Answers
निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि रना प्रताप द्वारा मुगल सेना के छक्के छुड़ाने का वर्णन किया है|
व्याख्या: कवि राणा प्रताप के रन कोशल के बारे में कहता है की राणा इस तरह भयानक युद्ध करता था की वह कहीं रुकने का नाम ही नहीं लेता था| वह युद्धभूमि में जैसे-जैसे आगे बढ़ता था , वैसे-वैसे और भी युद्ध का उत्साह बढ़ता जाता था|
राणा प्रताप कहता था की युद्धभूमि में मानसिंह उसका मुकाबला नहीं कर सकते है , उनके हाथों राणा का शरीर रक्त रंजित हो , यह कदापि नहीं हो सकता| राणा यह पुर्ण विश्वास के साथ कहता है की युद्ध में विजय उसकी हो होगी , यह पूर्ण निश्चित है| उसके जीते जी मुगल सेना अभिमान प्रकट करें , यह कदापि नहीं हो सकता है|
काव्यगत-सौन्दर्य
कवि के द्वारा सोंदर्य राणा प्रताप के अप्रतिम शोर्य का बखान किया गया है|
भाषा खड़ीं बोली
रस-वीर
अलंकार – अनुप्रास , श्लेष |
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निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
किंस्वित् प्रवसतो मित्रं किंस्विन् मित्रं गृहे सतः ?
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन् मित्रं मरिष्यतः ?
सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य भिषङ् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ।।