निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट ।
पूरा किया बिसाहूँणाँ, बहुरि न आवौं हट्ट
जाका गुरू भी अंधला, चेला खरा निरंध
अंधे-अंधा ठेलिया, दुन्यूँ कूप पडंत ॥
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कबीरदास कहते हैं कि अब मुझे पुन: इस जन्म-मरणरूपी संसार के बाज़ार में आने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि मुझे सद्गुरु से ज्ञान प्राप्त हो चुका है।
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