- निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या
" बानी जगरानी की उदारता बरवानी जाइ
ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध,
कहि-कहि हारे सब कहि न काहू लई ।"
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संदर्भ-प्रस्तुत पद 'केशवदास 'द्वारा रचित वन्दना के शीर्षक "सरस्वती वन्दना "से लिया गया हे
प्रसंग-यहा पर कवि ने मा सरस्वती की उदारता का वर्णन किया है
व्याख्या-कवि कहते हैं कि जगत में पूज्य मा सरस्वती जी की उदारता का वर्णन नही कीया जा सकता है संसार मे श्रेष्ठ बुध्ही किसी के पास नही है जो उनकी उदारता का वर्णन कर सके देवता सिध्द मुनि श्रेष्ठ तपस्वी भी कह कह हर गये ल्र्किं कोई भी उनकी उदारता का वर्णन नही लार सका उनके पति ब्रम्हा जी ने पुत्र शंकर जी ओर उनके नाती कार्तिकेय ने भी सरस्वती की उदारता का वर्णन किया लेकिन वे भी उनकी उदारता पर नही पा सके
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