निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिये :
1.
भीतर भीतर सब रस चूसै ।
हसि हसि के तन मन धन Dसै।
जाहिर बातन में अति तेज
क्यों सखि साजन नहीं अंग्रेज।
2
सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,
सखी, वे मुझसे कह कर जाते
कह, क्या मुझसे वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?
3.
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय कर्मरत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु- -मालिका अट्टालिका प्राकार ।
4.
न जाने, तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन ।
देख वसुधा का यौवन भार
गूंज उठता है जब मधुमास,
विधुर उर के-से मृदु उद्गार
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छवास
न जाने, सौरभ के मिस कौन
सँदेशा मुझे भेजता मौन ।
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निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिये :
1.
भीतर भीतर सब रस चूसै ।
हसि हसि के तन मन धन Dसै।
जाहिर बातन में अति तेज
क्यों सखि साजन नहीं अंग्रेज।
2
सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,
सखी, वे मुझसे कह कर जाते
कह, क्या मुझसे वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?
3.
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय कर्मरत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु- -मालिका अट्टालिका प्राकार ।
4.
न जाने, तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन ।
देख वसुधा का यौवन भार
गूंज उठता है जब मधुमास,
विधुर उर के-से मृदु उद्गार
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छवास
न जाने, सौरभ के मिस कौन
सँदेशा मुझे भेजता मौन ।
Answer: ji
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