निम्नलिखित पद्यांशों में से किसी एक पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 80 शब्द) जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार।।
अथवा
लाज भरी आँखें थीं मेरी, मन में उमंग रंगीली थी।
तान रसीली थी कानों में, मैं चंचल छैल छबीली थी।।
दिल में एक चुभन-सी थी, यह दुनिया अलबेली थी।
मन में एक पहेली थी मैं सबके बीच अकेली थी।।
मिला खोजती थी जिसको हे बचपन ! ठगा दिया तूने।
अरे जवानी के फैदे में मुझको फैसा दिया तूने।।
माना मैंने युवा काल का जीवन खूब निराला है।
आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदयं मोहने वाला है।।
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