निम्नलिखित श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए–
उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् ।
शूरं कृतज्ञं दृढसौह्रदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ।।
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उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं मुद्रण ई-मेल
उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं
क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् ।
शूरं कृतज्ञं दृढसौह्रदं च
लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ॥
उत्साहसंपन्न, अविलंबी, क्रियाविधि के ज्ञाता, व्यसन से अलिप्त, शूर, कृतज्ञ, और दृढ मैत्रीवाले इन्सान के पास, लक्ष्मी अपने आप निवास करने के हेतु से जाती है ।
Explanation:
न दैवमिति सञ्चिन्त्य त्यजेदुद्योगमात्मनः ।
अनुद्यमेन कस्तैलं तिलेभ्यः प्राप्तुमर्हति ॥
“नसीब है” एसा सोचकर इन्सान ने अपना उद्योग छोडना नहीं चाहिए । उद्यम के बिना तिल में से तेल कौन प्राप्त कर सकता है ?
तृणादपि लघुस्तूलः तूलादपि च याचकः ।
वायुना किं न नीतोऽसौ मामयं प्राथयेदिति ॥
तिन्के से हल्का रु है, और रु से भी हल्का याचक है । पर, याचक को वायु क्यों नहीं खींच जाता ? (इस लिये कि उसे डर है) कहीं मुज से भी माग लेगा तो !
उत्साहसंपन्नमदीर्घसूत्रम् क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् ।
शूरं कृतज्ञं दृढसौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ॥
उत्साहपूर्ण, काम पीछे न टाल ने वाला (अदीर्घसूत्री), पद्धति से काम करने वाला, निर्व्यसनी, शूर, कृतज्ञ, और दृढ व स्वच्छ हृदय वाले के यहाँ लक्ष्मी स्वयं निवास करने आती है ।
षड्दोषा पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधं आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥
उन्नति की कामना करने वाले को निद्रा, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य, और दीर्घसूत्रता (काम टालने की वृत्ति) का त्याग करना चाहिए ।
गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते पितृवंशो निरर्थकः ।
वासुदेवं नमस्यन्ति वसुदेवं न वै जनाः ॥
गुणों की ही सर्वत्र पूजा होती है, ना कि पितृवंश की ! लोग वासुदेव की पूजा करते हैं, न कि वसुदेव की ।
आशा नाम मनुष्याणां काचिदाश्चर्यशृंखला ।
यया बद्धाःप्रधावन्ति मुक्तास्तिष्टन्ति पंगुवत् ॥
आशा मनुष्यों की आश्चर्यकारक बेडी है, जिससे बद्ध व्यक्ति दौडने लगता है और मुक्त व्यक्ति पंगुवत् स्थिर हो जाता है !
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