निम्नलिखित शब्दों में से किस शब्द में ' अ ' उपसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है- *
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ak shyari
राग़ों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है…
न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है
वो देखो मयकदे के रास्ते में
कोई अल्लाह वाला जा रहा है
थे पहले ही कई सांप आस्तीं में
अब इक बिच्छू भी पाला जा रहा है
मिरे झूठे गिलासों की छका कर
बहकतों को संभाला जा रहा है
हमी बुनियाद का पत्थर हैं लेकिन
हमें घर से निकाला जा रहा है
जनाज़े पर मिरे लिख देना यारो
मोहब्बत करने वाला जा रहा है
डॉ राहत इन्दोरी
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जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
डॉ राहत इन्दोरी
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सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
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जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
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जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
डॉ राहत इन्दोरी
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जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे
डॉ राहत इन्दोरी
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फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
डॉ राहत इन्दोरी
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अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है
एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे
मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है
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आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं
डॉ राहत इन्दोरी
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ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेश में वो किससे रजाई मांगे
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राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना
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हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते।
डॉ राहत इन्दोरी
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उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
डॉ राहत इन्दोरी