निम्नलिखित वाक्ययोः भावार्थ: हिन्द्यां संस्कृते वा लिखत (क) समत्वं योग उच्यते।।
(ख) चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्।
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(क) भावार्थ: (संस्कृत) श्रीकृष्ण कथयति हे अर्जुन ! त्वं हानि-लाभं समान भावेन पश्यन् समत्वयोगे स्थितः सन् आसक्ति परित्यज्य सफल्याम् आसफल्यं च समाने मत्त्वा कर्माणि सम्पादय। यतः अयमेव समत्वयोग उच्यते । (हिन्दी) श्रीकृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन! तू हानि-लाभ को समान भाव से देखते हुए समत्वयोग में स्थित हुआ और आसक्ति का परित्याग कर सफलता और असफलता को समान मानकर कर्मों को कर। क्योंकि यही समत्व योग कहलाता है।
(ख) भावार्थः (संस्कृत) यः मनुष्यः सदैव अभिवादनं प्रणामादिकं करोति, सदैव गुरूणां सेवां करोति, तस्य वयः ज्ञानं, कीर्ति, शक्तिः च सदैव वृद्धिं यान्ति। (हिन्दी) जो मनुष्य सदैव अभिवादन (प्रणाम आदि) करता है, सदैव बड़ों की सेवा करता है, उसकी आयु, ज्ञान, कीर्ति और शक्ति ये चारों वृद्धि को प्राप्त होती हैं।
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