Hindi, asked by 24092005anjali, 9 months ago

निम्नलिखित विषय पर अनुच्छेद लिखिए वनों का महत्व जीवन और स्वास्थ्य​

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Answered by devaswini
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Answer:जंगल और मनुष्य

वन धरती पर सदियों से हैं, तथा ये वन ही हैं जिनके कारण विश्व की जैव विविधता में निरंतरता बनी रहती है। किसी राष्ट्र में विद्यमान वन अथवा जंगल, उस राष्ट्र की न केवल आर्थिक, वरन सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति में भी भागीदारी करते हैं। वन तथा जंगल आर्थिक विकास, जैव विविधता, मनुष्य की आजीविका, तथा पर्यावरणीय अनुकूलन प्रतिक्रियाओं के लिए उपयोगी तथा आवश्यक होते हैं।

परंतु वनों के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में जलवायु की स्थिरता, जल-चक्र का विनियमन, तथा सैकड़ों-हज़ारों जीवों को निवास-स्थल प्रदान करना है। जनसँख्या-वृद्धि, निर्धनता एवं निम्न-विकास भारत में पर्यावरण से होने वाली समस्याओं के लिए कुछ हद तक उत्तरदायी हैं।

वन तथा वृक्ष ऊर्जा के अक्षय स्त्रोत हैं, तथा इसी कारण ये किसी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति में अहम भागीदार होते हैं। इसके साथ ही यह वायु को शुद्ध करके पर्यावरण की गुणवत्ता को बढ़ाने का कार्य भी बखूबी निभाते हैं।  

भारत उन गिने-चुने राष्ट्रों में से एक है, जिन्होंने 1894 तक वन अधिनियम पारित कर लिए थे। उसके बाद वर्ष 1952 तथा 1988 में इनमे संसोधन भी किये गए। इस वन अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वनों का बचाव, संरक्षण एवं उचित विकास करना है।

भारतीय वन नीति के मुक्य उद्देश्य

भारत की वन नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

i) परिस्थिक्तिकीय संतुलन के संरक्षण एवं पुनर्नवीकरण के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता को बरक़रार रखना।

ii) प्राकृतिक विरासतों का संरक्षण करना।

iii) नदी, झील तथा तालाबों के किनारे पर मृदा अपरदन तथा अनाच्छादन की प्रक्रिया को रोकना।

iv) राजस्थान एवं आस पास के मरुस्थलीय क्षेत्र में अधिक संख्या में रेत के टीले को बनने से रोकना।

v) अधिक मात्रा में वृक्षारोपण एवं सामाजिक वानिकी के माध्यम से वनों तथा वृक्षों का क्षेत्र-विस्तार करना।

vi) ग्रामीण एवं आदिवासी निवासियों की ईंधन, चारे, फल, लकड़ी इत्यादि से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।

vii) राष्ट्रीय स्तर पर वनों से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वृक्षों की गुणवत्ता में सुधार लाना।

viii) वन से प्राप्त उत्पादों का कुशल उपयोग एवं लकड़ी के उपयोग में कटौती को बढ़ावा देना।

ix) लोगों की सहायता से आंदोलन के रूप में इन नियमों का उचित पालन करवाना तथा रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए वनों-जंगलों पर दबाव कम करना।

वनों का उपयोग व हमारे जीवन में महत्व

किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में वनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। वृक्षों से हमे प्रमुख रूप से लकड़ी तथा ईंधन प्राप्त होता है, जिसका उपयोग घरों तथा उद्योगों में किया जाता है। वृक्षों से प्राप्त लुगदी, तख्ते, माचिस की लकड़ी तथा अन्य पदार्थ अनेक घरेलू उद्योगों में काम आते हैं।

वृक्षों से ही हमे कुछ कम प्रमुख परन्तु महत्वपूर्ण उत्पाद जैसे बांस, गन्ने, घास, अनेक प्रकार के तेल, औषधि युक्त पौधे, लाख, वसा, गोंद, डाई इत्यादि पदार्थ प्राप्त होते हैं, जिनका मूल्य विदेशी विनिमय की दृष्टि से काफी अधिक होता है। वृक्षों के कारण हम अनेक प्रकार के आंधी-तूफानों, अपरदन, लू आदि से भी सुरक्षित रहते हैं। पारिस्थितिकीय संतुलन की दृष्टि से वृक्ष बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं।  

6वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान “सामाजिक वानिकी” परियोजना लकड़ी की कमी वाले शहरों में ईंधन, चारे तथा अन्य उत्पादों की पूर्ति हेतु प्रस्तावित की गयी थी। वृक्षों के बचाव के लिए बड़ी संख्या में प्रमुख रूप से वृक्षारोपण, वनों का पुनर्जीविकरण एवं नवीनीकरण, वन में निवास, चरवाहों पर नियंत्रण इत्यादि का अनुपालन करने की आवश्यकता है।

धरती की 90% जैव विविधता चाहे वह वृक्ष हो या जीव, वनों में ही निवासित है। प्रत्येक वन अपने पशुओं एवं वृक्षों की सहूलियत के अनुसार स्वयं के वातावरण को परिवर्तित करने में सक्षम है। यही कारण है कि धरती से वनों की समाप्ति के साथ ही सभी जीव एवं वृक्ष भी विलुप्त हो जाएंगे, एवं वनों के अभाव में किसी भी प्रकार का जीवन असंभव होगा।

 

मनुष्य की वनोन्मूलन की प्रवृत्ति के कारण भारत एवं समस्त विश्व के सामने परिस्थिक्तिकीय असंतुलन एवं जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। भारत की जलवायु, मौसम, वर्षा की मात्रा एवं मृदा की गुणवत्ता पर इसका बुरा असर साफ़ देखा जा सकता है।

मनुष्यों को वृक्षों की महत्ता समझने की अत्यंत आवश्यकता है। उन्हें ये समझना होगा कि वृक्ष हैं तो जीवन है, वृक्ष नही तो कुछ भी नही। वृक्षो की उपयोगिता न सिर्फ दैनिक जीवन, बल्कि प्रति पल, न सिर्फ निचले स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर है।  

धरती की 90% जैव विविधता चाहे वह वृक्ष हो या जीव, वनों में ही निवासित है। प्रत्येक वन अपने पशुओं एवं वृक्षों की सहूलियत के अनुसार स्वयं के वातावरण को परिवर्तित करने में सक्षम है। यही कारण है कि धरती से वनों की समाप्ति के साथ ही सभी जीव एवं वृक्ष भी विलुप्त हो जाएंगे, एवं वनों के अभाव में किसी भी प्रकार का जीवन असंभव होगा|

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