निम्नलिखित विषय पर कहानी लिखे:-
भाई-बहन-बंग महिला (राजेन्द्र बाला घोष)
नशा - मुंशी प्रेमचंद
मलबे का मालिक - मोहन राकेश
Answers
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Explanation:
भाई बहन कहानी की शुरुआत होती है ,जब भाई और बहन जिनकी उम्र 11 वर्ष और 6 -7 वर्ष है पिता के साथ किसी मेले में जा रहे है।
भाई जिसका नाम ‘हरिराम ‘है तथा ज्यादा गोरा होने के कारण उसका नाम साहब पड़ गया है और बहन का नाम सुन्दर देइ है पर सब उसे सुन्दरिया कह कर पुकारते हैं ,
सूंदर के पास कुल एक आना ही पैसा है ( एक आना मतलब एक रूपए का 1 /16 भाग है ,आना ब्रिटिश काल में इस्तेमाल होता था )।
आज की तुलना में आना का महत्व ज्यादा था पर इतना भी नहीं था की सुन्दर उससे अपने पसंद की सारी वस्तुएँ खरीद पाती। पर यह उसकी मासूमियत थी कि वह एक आने में अपने चाहत की सारी वस्तुएँ पा लेना चाहती थी वही हरिराम उससे प्रौढ़ होने के कारण पैसे का महत्व ज्यादा समझता था। वह सुन्दर की इच्छा और और उसकी क्षमता में तालमेल न देख उसपर हँसता ।
हरिराम अपने पास ज्यादा पैसे होने से खुश हो कर ज्यादा वस्तुएँ खरीदने की बात कह खुश भी हो रहा था कि मैं सारी पसंद की वस्तुएँ खरीद पाउँगा। सुन्दर भाई के पास ज्यादा पैसे होने की वजह से जरा भी विचलित नहीं हो रही थी ,यहाँ उसके सही संस्कार की भी चर्चा की गई है ,क्युकी माँ ने उसे यह समझाया है कि भाई बड़ा है और उसे ज्यादा कुछ मिले तो सुन्दर को धैर्य रखना चाहिए ,यानि अगर सही संस्कार और समझ बचपन में ही दी जाए तो एक अच्छे संस्कार का जन्म होता है , बजाए प्रतिद्वंदिता के।
यहाँ लेखिका ने एक बहुत गहरा सन्देश दिया है कि जो अपनी वर्तमान अवस्था से संतुष्ट है , वो ही सबसे बुद्धिमान है , मतलब दुनिया का सबसे मूर्ख व्यक्ति होता है जिसमे संतोष नहीं I
आगे घटनाक्रम बदलता है , साहब के बड़े भाई श्रीराम दिया की रौशनी में बैठे पढ़ रहे है , तभी साहब और सुन्दर वहाँ आते है।
श्रीराम की किताब में रेलगाड़ी का फोटो देख , सुन्दर प्रसन्न हो साहब से देखने को कहती है। इस बात पर साहब हँसता है और कहता है ये तो सिर्फ फोटो है मेरे पास तो चाभी से चलने वाली रेलगाड़ी है ,यह कह वह झट से अपना खिलौना ले आता है। सुन्दर भी अपना खिलौना ले आती है। साहब कहता है मेरी रेल गाड़ी तो चाभी से दौडती है। इस बात पर सुन्दर उदास हो जाती है।
ये सब देख कर श्रीराम बोलते है सुन्दर तुम्हारा खिलौना बहुत सुन्दर है इसके बाद वो साहब से बोलते है तुमने पांच आने बर्बाद कर दिए और दूसरे देश के कारीगर यानि विदेशी को दे आया पैसे। अबोध साहब इस बात के मर्म को समझ नहीं पाया और आश्चर्य से पूछ बैठता है वो कैसे मैंने तो गांव के ही कारीगर को पैसे दे कर लिए है ,रामदीन से !
श्रीराम फिर साहेब को समझाते है कि तुमने जिस रामदीन से ख़रीदे है असल में रामदीन ने खुद नहीं बनाया और न ही देश में ये खिलौना बनाया गया है ,बल्कि ये विदेश में बना हुआ है ,और इस तरह तुम्हारा पैसा जर्मनी के कारीगर यानि विदेश चला गया। जर्मनी के लोग पहले ही अमीर और सुखी हैं ,जबकि हमारे यहाँ के कारीगर गरीब ,अगर इनसे खरीदोगे तो कम से कम इन्हे भरपेट खाना तो मिल जाएगा।
श्रीराम अब थोड़ा सख्ती से कहते हैं । बड़ा होने के नाते अपने छोटे भाई को सीख देना जरुरी समझते हैं – जो दूसरो को नीचा देखता है ,असल में वो खुद नीचे हो जाता है(यानि जिसकी छोटी सोच होती है वो असल में छोटी सोच का होता है )। तुम गुणी हो पर तुममे अभिमान भरता जा रहा है शायद ये तुम्हारा नाम साहब सभी ने रख दिया है इस कारण । ( यहाँ यह बताना जरुरी है कि अंग्रेजबहुत गोरे होते थे , और भारतीय उन्हेंगुलामी के कारण साहेब कह कर पुकारते थे ,और हरिराम भी बहुत गोरा था बिलकुलअंग्रेजो की तरह इसीलिए उसे सब साहबकह कर पुकारते थे ,और इसी कारण उसमेश्रेष्ठता का भ्रम और अभिमान जड़ पकड़नेलगा था। पढ़े लिखे श्रीराम को ये बातसमझ में आने लगी थी वो समझ गए थे कि इसी नाम के कारण इसका रुझान विदेशऔर विदेशी के तरफ अभी से बढ़ने लगा है और समय रहते इसपर विराम लगाना जरुरी है ,वरना यह भ्रम इसे कही का नहीं छोड़ेगा )
आगे वे कहते है ये इसी कारण उत्पन्न हुआ होगा इसलिए अब से तुम्हे तुम्हारे असली नाम ‘हरिराम ‘ से ही पुकारा जाएगा।
आगे वे कहते है इस देश में जो लोग थोड़ा पढ़ लिख गऐ है वे विदेशी वस्तुओ के आकर्षण में बंध गये है , इस तरह देश और भी गरीबी में डूबता जा रहा है। हमसब इसके लिए जिम्मेदार है।
आगे युवा वर्ग को नसीहत दी गई है कि अगर युवा अभी से नहीं समझेंगे तो अपना और अपने देश का नाश कर लेंगे लड़कपन में जो सीख मिलती है वो ही जीवन की बुनियाद होती है , आगे श्रीराम उसे कुछ अच्छा करने की और उपहार का भी प्रलोभन देते है। यहाँ सही सीख ही एक उपहार के समान है। जो अगर सही समय पर मिल जाए तो जीवन सफल हो जाता है।
इसे अगर आज के सन्दर्भ में देखे तो सही समय पर सही शिक्षा देनी जरुरी है क्योंकि ये युवा ही देश का कल हैं देश को सवांरना है तो पहले युवाओ की सोच को साफ करना होगा सही संस्कार देने होंगे सही दिशा निर्देश देने होंगे। सही शिक्षा सही उम्र में देने का सही परिणाम भी आता है। इसी का नतीजा ये हुआ कि हरिराम अब एक नामी गिरामी वकील तथा स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग करने को प्रेरित करने वाले अगुआ हैं। । इस तरह श्रीराम भी अपने दिए उपदेश और उसका सुखकारी परिणाम देख कर तृप्त हैं। बहन भी अपने सद्गुणों के कारण सुख से है। यहाँ चुपके से लेखिका ने एक और समस्या को भी हल्का सा छू कर आगे बढ़ गई हैं वो समस्या थी ‘बालविवाह’।

अंत में यही सन्देश है कि युवा वर्ग पहले देश के भले की सोचे तभी देश रहेगा ,तो हम सब रहेंगे , विदेशी हमें अपने वस्तुओ के आदी बना कर भी अलग तरह से गुलाम बना रहे हैं,और फिर हमें ही आँख दिखाते हैं ,क्यों न हम आज भी स्वदेशी अपनाये। ये भी तो देश भक्ति है जरुरी तो नही कि हर कोई सीमा पर ही जा कर युद्ध करे ऐसे भी तो लड़ा जा सकता है। देशभक्ति दिखाई जा सकती है।