निम्नलिखित विषय पर निबंध लिखे:-
मेरे राम का मुकुट भीग रहा है - विद्यानिवास मिश्र
महाजनी सभ्यता - मुंशी प्रेमचंद
Answers
मेरे राम का मुकुट भीग रहा है 'विद्या निवास मिश्र' द्वारा रचित एक निबंध है।प्रस्तुत निबंध में लेखक के गहन विचारो का परिणाम दिखाई देता है।प्रस्तुत निबंध को हम एक विचारात्मक निबंध कह सकते हैं।निबंध में लेखक अपने कुछ विचार प्रकट करते हैं तथा अपने कुछ प्रश्नो का उत्तर खोजते हैं।यह विचार और यह सभी प्रश्न लेखक के जीवन की एक घटना से निकलते हैं।लेखक का एक पुत्र जो किशोरावस्था का है तथा लेखक के घर आई एक मेहमान एक संगीत के कार्यक्रम में रात को जाते हैं जहाँ से लौटने में उन्हें देर हो जाती है।उनकी प्रतिक्षा करते हुए लेखक अपने विचारो की दुनिया में खो जाता है तथा एक साथ हमारे समाज की विभिन्न परिस्थितियों और सामस्याओं को लेकर उनके मैं में प्रश्न और विचार उठने लगते हैं।लेखक को अपनी दादी का एक गीत याद आता है जिसमे भगवान् राम के वनवास चले जाने पर अयोध्यावासियों की चिंता प्रकट कि गयी है।
लेखक भारतीय समाज में फैले पीढ़ियों के अंतर पर भी विचार करता है/एक और जहाँ पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी की क्षमताओ पर विस्वास नहीं करती अपितु उनकी क्षमताओ की उपेक्षा करती है/वहीँ दूसरी ओर नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को रूढ़िवादी समझती है/वह उनकी भावनाओ की भी चिंता नहीं करती/ पुरानी पीढ़ी का मन अपनी संतान के ऊपर संकट आने की कल्पना मात्र से ही उद्द्विग्न हो जाता है किन्तु नयी पीढ़ी अपनी ही धुन में रहती है/
अपनी चिंताओं में डूबा हुआ लेखक अत्यंत गहराई तक उत्तर जाता है/उसका ध्यान तब हटता है जब उसका पुत्र और उसकी मेहमान लड़की घर वापस आ जाते हैं।दोनों ही लोग अपने अपने कमरे में सोने चले जाते हैं लेकिन लेखक को अब भी नींद नहीं आती है।
लेखक अपने बिस्तर पर पड़े पड़े विचार जगत में घूमता रहता है।वह सोचता है की संसार के अन्य सभ्य समाजो की पीढ़ियाँ चाँद तक का चक्कर लगा आई हैं और हम भारतीय अपनी संतान के देर से घर आने की चिंता में डूबे रहते हैं।अपने ही मन के अंदर चलते तर्क वितर्क में लेखक विवाद करने लगता है।लेखक इस बात को स्वीकार करता है की इस स्वतंत्र नयी पीढ़ी को बाँध कर रखना,हदो में रखना तथा पुराने ढर्रे पर चलाना सरल कार्य नहीं है।पुरानी पीढ़ी को उसकी चिंताओं से मुक्त कर देना या अलग कर देना भी संभव नहीं है।अतः इन दोनों पीढ़ियों के अंतर को पाट पाना तो दूर समझ पाना तक लेखक के लिए कठिन हो रहा है।इन विचारों में डूबे हुए ही सुबह हो जाती है तथा लेखक जो समय को निराशावादी समझता है,अपने कुछ अंतिम प्रश्नो के साथ उदासी में लीन हो जाता है।
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Ans. मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
मेरे राम का मुकुट भीग रहा है 'विद्या निवास मिश्र' द्वारा रचित एक निबंध है।प्रस्तुत निबंध में लेखक के गहन विचारो का परिणाम दिखाई देता है।प्रस्तुत निबंध को हम एक विचारात्मक निबंध कह सकते हैं।निबंध में लेखक अपने कुछ विचार प्रकट करते हैं तथा अपने कुछ प्रश्नो का उत्तर खोजते हैं।यह विचार और यह सभी प्रश्न लेखक के जीवन की एक घटना से निकलते हैं।लेखक का एक पुत्र जो किशोरावस्था का है तथा लेखक के घर आई एक मेहमान एक संगीत के कार्यक्रम में रात को जाते हैं जहाँ से लौटने में उन्हें देर हो जाती है।उनकी प्रतिक्षा करते हुए लेखक अपने विचारो की दुनिया में खो जाता है तथा एक साथ हमारे समाज की विभिन्न परिस्थितियों और सामस्याओं को लेकर उनके मैं में प्रश्न और विचार उठने लगते हैं।लेखक को अपनी दादी का एक गीत याद आता है जिसमे भगवान् राम के वनवास चले जाने पर अयोध्यावासियों की चिंता प्रकट कि गयी है।
लेखक भारतीय समाज में फैले पीढ़ियों के अंतर पर भी विचार करता है/एक और जहाँ पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी की क्षमताओ पर विस्वास नहीं करती अपितु उनकी क्षमताओ की उपेक्षा करती है/वहीँ दूसरी ओर नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को रूढ़िवादी समझती है/वह उनकी भावनाओ की भी चिंता नहीं करती/ पुरानी पीढ़ी का मन अपनी संतान के ऊपर संकट आने की कल्पना मात्र से ही उद्द्विग्न हो जाता है किन्तु नयी पीढ़ी अपनी ही धुन में रहती है/
अपनी चिंताओं में डूबा हुआ लेखक अत्यंत गहराई तक उत्तर जाता है/उसका ध्यान तब हटता है जब उसका पुत्र और उसकी मेहमान लड़की घर वापस आ जाते हैं।दोनों ही लोग अपने अपने कमरे में सोने चले जाते हैं लेकिन लेखक को अब भी नींद नहीं आती है।
लेखक अपने बिस्तर पर पड़े पड़े विचार जगत में घूमता रहता है।वह सोचता है की संसार के अन्य सभ्य समाजो की पीढ़ियाँ चाँद तक का चक्कर लगा आई हैं और हम भारतीय अपनी संतान के देर से घर आने की चिंता में डूबे रहते हैं।अपने ही मन के अंदर चलते तर्क वितर्क में लेखक विवाद करने लगता है।लेखक इस बात को स्वीकार करता है की इस स्वतंत्र नयी पीढ़ी को बाँध कर रखना,हदो में रखना तथा पुराने ढर्रे पर चलाना सरल कार्य नहीं है।पुरानी पीढ़ी को उसकी चिंताओं से मुक्त कर देना या अलग कर देना भी संभव नहीं है।अतः इन दोनों पीढ़ियों के अंतर को पाट पाना तो दूर समझ पाना तक लेखक के लिए कठिन हो रहा है।इन विचारों में डूबे हुए ही सुबह हो जाती है तथा लेखक जो समय को निराशावादी समझता है,अपने कुछ अंतिम प्रश्नो के साथ उदासी में लीन हो जाता है
ASK THE SEPARATE QUESTION FOR MAHAJANI SABHYATA BY MUNSHI PREMCHANDRA