१. निम्ननि वितरलीका वयं पठित्वा प्रश्नान उतरत-
साहित्य संगीत कलाविहिनः, साक्षात्पशुः पृच्छविषापटी
तुणं न खादन्नपि जीवमान: तद्भागधेयं परम
पशूनाम् ।
एकपदेन उत्तरत-
2., तृणं खादन्नपि जीवमान: नीशा अस्ति?
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साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात नाख़ून और सींघ रहित पशु के समान है। और ये पशुओं की खुद्किस्मती है की वो उनकी तरह घास नहीं खाता।
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Explanation:
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः। तृणं न खादन्नपि जीवमानः तद्भागधेयं परमं पशूनाम्॥ ... जो साहित्य संगीत तथा कला से विहीन ...
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