न-मृदा के कोई दो उपयोग
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सर्वप्रथम 1879 ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया और मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया। भारत की मिट्टियाँ स्थूल रूप से पाँच वर्गो में विभाजित की गई है:
जलोढ़ मिट्टी या कछार मिट्टी (Alluvial soil),
काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी (Black soil),
लाल मिट्टी (Red soil),
लैटराइट मिट्टी (Laterite) तथा
मरु मिट्टी (desert soil)।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है:
(1) जलोढ़ मिट्टी
(2) काली मिट्टी
(3) लाल एवं पीली मिट्टी
(4) लैटराइट मिट्टी
(5) शुष्क मृदा (Arid soils)
(6) लवण मृदा (Saline soils)
(7) पीटमय मृदा (Peaty soil) तथा जैव मृदा (Organic soils
(8) वन मृदा (Forest soils)
जल को अवषोषण करने की क्षमता सबसे अधिक दोमट मिट्टी में होती है। मृदा संरक्षण के लिए 1953 में केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड की स्थापना की गयी थी। मरूस्थल की समस्या के अध्ययन के लिए राजस्थान के जोधपुर में अनुसंधान केन्द्र बनाये गये हैं।
जलोढ़ मिट्टी (दोमट मिट्टी) संपादित करें
क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत में सबसे अधिक क्षेत्रफल पर जलोढ़ मिट्टी पाये जाते है। भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 43.4 प्रतिशत भाग पर जलोढ़ मिट्टी मिलते है। जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेपण से होता है। जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। यह कारण है कि जलोढ़ मिट्टी में यूरिया खाद डालना फसल के उत्पादन के लिए आवश्यक होता है। जलोढ़ मिट्टी में पोटाश एवं चूना की पर्याप्त मात्रा होती है। भारत में उत्तर का मैदान (गंगा का मैदान) सिंध का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान गोदावरी का मैदान, कावेरी का मैदान नदियों जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से बने है। जलोढ़ की मिट्टी गेहूँ के फसल के लिए उत्तम माना जाता है। इसके अलावा इसमें धान एवं आलू की खेती भी की जाती है। जलोढ़ मिट्टी का निर्माण बलुई मिट्टी एवं चिकनी मिट्टी के मिलने से हुई है। जलोढ़ मिट्टी में ही बांगर एवं खादर मिट्टी आते है। बांगर पुराने जलोढ़ मिट्टी को एवं खादर नये जलोढ़ मिट्टी को कहा जाता है। जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्के धूसर रंग का होता है।
काली मिट्टी संपादित करें
काली मिट्टी क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से भारत में दूसरा स्थान रखता है। भारत में सबसे ज्यादा काली मिट्टी महाराष्ट्र में एवं दूसरे स्थान पर गुजरात प्रांत है। काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के उदगार के कारण बैसाल्ट चट्टान के निर्माण होने से हुई। बैसाल्ट के टूटने से काली मिट्टी का निर्माण होता है। दक्षिण भारत में काली मिट्टी को 'रेगूर' (रेगूड़) कहा जाता है। केरल में काली मिट्टी को 'शाली' कहा जाता है। उत्तर भारत में काली मिट्टी को 'केवाल' के नाम से जाना जाता है।
काली मिट्टी में भी नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। इसमें लोहा, चूना, मैग्नीशियम एवं एलूमिना की मात्रा अधिक हाती है। काली मिट्टी में पोटाश की मात्रा भी पर्याप्त होती है।
काली मिट्टी कपास के उत्पादन के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। इसके अलावा काली मिट्टी में चावल की खेती भी अच्छी होती है। काली मिट्टी में मसूर, चना, खेसाड़ी की भी अच्छी उपज होती है।
काली मिट्टी में लोहे की अंश अधिक होने के कारण इसका रंग काला होता है। काली मिट्टी में जल जल्दी नहीं सुखता है अर्थात इसके द्वारा अवषोषित जल अधिक दिनों तक बना रहता है, जिससे इस मिट्टी में धान की उपज अधिक होती है। काली मिट्टी सुखने पर बहुत अधिक कड़ी एवं भीगने पर तुरंत चिपचिपा हो जाती है। भारत में लगभग 5.46 लाख वर्ग किमी0 पर काली मिट्टी का विस्तार है।
लाल मिट्टी संपादित करें
क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत में लाल मिट्टी का तीसरा स्थान है। भारत में 5.18 लाख वर्ग किमी0 पर लाल मिट्टी का विस्तार है। लाल मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टान के टूटने से हुई है। ग्रेनाइट चट्टान आग्नेय शैल का उदाहरण है। भारत में क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से सबसे अधिक क्षेत्रफल पर तमिलनाडु राज्य में लाल मिट्टी विस्तृत है। लाल मिट्टी के नीचे अधिकांश खनिज मिलते हैं।
लाल मिट्टी में भी नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। लाल मिट्टी में मौजूद आयरनर ऑक्साइड(Fe2O3) के कारण इसका रंग लाल दिखाई पड़ता है। लाल मिट्टी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। इसमें ज्यादा करके मोटे अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा, मूँगफली, अरहर, मकई, इत्यादि होते है। कुछ हद तक धान की खेती इस मिट्टी में की जाती है, लेकिन काली मिट्टी के अपेक्षा धान का भी उत्पादन कम होता है। तमिलनाडु के बाद छतीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश एवं उड़ीसा प्राप्त में भी लाल मिट्टी मिलते है।
पीली मिट्टी - भारत में सबसे अधिक पीली मिट्टी केरल राज्य में है। जिस क्षेत्र में लाल मिट्टी होते है एवं उस मिट्टी में अधिक वर्षा होती है तो अधिक वर्षा के कारण लाल मिट्टी के रासायनिक तत्व अलग हो जाते है, जिसमें उस मिट्टी का रंग पीला मिट्टी दिखाई देने लगता है।