नेम धर्म की कमजोरी रही होraके लिए बंधन बन गया
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नेम-धर्म की कमजोरी रही होरी के लिए बंधन बन गये...
✎... यह पंक्तियां हरिशंकर परसाई द्वारा रचित निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से संबंधित हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास ‘गोदान’ के ही एक पात्र होरी का उदाहरण देकर प्रेमचंद से पूछ है। लेखक प्रेमचंद को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम समझौता नहीं कर सके, क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी जो होरी को ले डूबी। वही नेम-धर्म वाली कमजोरी। नेम धर्म की कमजोरी होरी की जंजीर थी और नेम धर्म का पालन करना उसके लिए बंधन के समान रहा जो उसको ले डूबा। मगर जिस तरह तुम मुस्कुरा रहे हो, उससे ऐसा दिखाई पड़ता है कि शायद नेम धर्म का पालन तुम्हारे लिए बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी।
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