निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम्
मृदुं गाय गीति ललित-नीति-लीनाम् ।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-माला:
वसन्ते लसन्तीह सरसा रसाला:
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ।।1।।
हिन्दी अनुवाद निनादय...hindi meaning
Answers
Answer:जिस (भूमि) में महासागर, नदियाँ और जलाशय (झील, सरोवर आदि) विद्यमान हैं, जिसमें अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ उपजते हैं तथा कृषि, व्यापार आदि करने वाले लोग सामाजिक संगठन बना कर रहते हैं (कृष्टय: सं बभूवु:), जिस (भूमि) में ये साँस लेते (प्राणत्) प्राणी चलते-फिरते हैं; वह मातृभूमि हमें प्रथम भोज्य पदार्थ (खाद्य-पेय) प्रदान करे ।॥1।।
जिस भूमि में चार दिशाएँ तथा उपदिशाएँ अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ (फल, शाक आदि) उपजाती हैं; जहाँ कृषि-कार्य करने वाले सामाजिक संगठन बनाकर रहते हैं (कृष्टयः सं बभूवु:); जो (भूमि) अनेक प्रकार के प्राणियों (साँस लेने वालों तथा चलने-फिरने वाले जीवों) को धारण करती है, वह मातृभूमि हमें गौ-आदि लाभप्रद पशुओं तथा खाद्य पदार्थों के विषय में सम्पन्न बना दे ॥2॥
अनेक प्रकार से विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले तथा अनेक धर्मों को मानने वाले जन-समुदाय को, एक ही घर में रहने वाले लोगों के समान, धारण करने वाली तथा कभी नष्ट न होने देने वाली (अनपस्फुरन्ती) स्थिर-जैसी यह पृथ्वी हमारे लिए धन की सहस्तों धाराओं का उसी प्रकार दोहन करे जैसे कोई गाय बिना किसी बाधा के दूध देती हो ॥3।।
Explanation:
Step:1यह गीत आधुनिक संस्कृत-साहित्य के प्रख्यात कवि पं. जानकी वल्लभ शास्त्री की रचना 'काकली' नामक गीतसंग्रह से संकलित है। इसमें सरस्वती की वन्द्ना करते हुए कामना की गई है कि हे सरस्वती! ऐसी वीणा बजाओ, जिससे मधुर मञ्जरियों से पीत पंक्तिवाले आम के वृक्ष, कोयल का कूजन, वायु का धीरे-धीरे बहना, अमराइयों में काले भ्रमरों का गुऊ्जार और नदियों का (लीला के साथ बहता हुआ) जल, वसन्त ऋतु में मोहक हो उठे। स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी गयी यह गीतिका एक नवीन चेतना का आवाहन करती है तथा ऐसे वीणास्वर की परिकल्पना करती है जो स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करे। अन्वय और हिन्दी भावार्थ
अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। ललितनीतिलीनां गीतिं मृदुं गाय। हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ, सुन्दर नीतियों से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो। इह वसन्ते मधुरमऊ्जरीपिक्जरीभूतमालाः सरसाः रसालाः लसन्ति। ललितकोकिलाकाकलीनां कलापाः ( विलसन्ति )। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
Step:2इस वसन्त में मधुर मऊ्जरियों से पीली हो गयी सरस आम के वृक्षों की माला सुशोभित हो रही है। मनोहर काकली (बोली, कूक) वाली कोकिलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं। हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
कलिन्दात्मजाया: सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दमन्दं वहति (सति ) माधुमाधवीनां नतां पडिक्तम् अवलोक्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
यमुना के वेतस लताओं से घिरे तट पर जल बिन्दुओं से पूरित वायु के मन्द मन्द बहने पर फूलों से झुकी हुई मधुमाधवी लता को देखकर, हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुऊ्जे मळ्जुकुऊ्जे मलय-मारुतोच्युम्बिते स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
मलयपवन से स्पृष्ट ललित पल्लवों वाले वृक्षों, पुष्पपुऊ्जों तथा सुन्दर कुञ्जों पर काले भौंरों की गुख्जार करती हुई पंक्ति को देखकर, हे वाणी नवीन वीणा को बजाओ।
तव अदीनां वीणाम् आकणर्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत् नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।
तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के नितान्त शान्त सुमन हिल उठें, नदियों का मनोहर जल क्रीडा करता हुआ उछल पड़े। हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।
प्रस्तुत गीत के समानान्तर गीत-
वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतन्त्र रव अमृत मन्त्र नव,
भारत में भर दे।
वीणावादिनि वर दे
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के गीत की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दी गई
हैं, जिनमें सरस्वती से भारत के उत्कर्ष के लिये प्रार्थना की गई है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त की रचना "भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती" भी ऐसे ही भावों से ओतप्रोत है।
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