Social Sciences, asked by deepalikashyap893, 1 year ago

नैनो-विज्ञान क्या है?

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Answered by afridullabaig79
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नैनो विज्ञान ने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी एक गहरी पैठ बनाई है।

Answered by ashubansal14782
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नैनो विज्ञान ने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी एक गहरी पैठ बनाई है। सूक्ष्मता के मापन और अनुप्रयोग पर आधारित भौतिक विज्ञान की यह विधा कोई बहुत नई नहीं है। अनुप्रयोग के रूप में यह बहुत प्राचीन है। लेकिन हाल के वर्षों में हुए शोधों ने इसके अध्ययन को एक नई दिशा प्रदान की है।

नैनो का इतिहास

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नैनो कितना बड़ा होता है या कितना छोटा। इसे जानने के लिए हम इसकी शुरुआत नैनो के इतिहास से करते हैं। आरंभ से ही सूक्ष्म का अध्ययन मानवीय उत्सुकता के केन्द्र में रहा है। हमारे पुराने ग्रंथों में पदार्थ विज्ञान और सूक्ष्मता का वर्णन मिलता है। लगभग 3000 वर्ष पूर्व रचित श्वेताश्वतरोपनिषद् में ब्रह्माण्ड के सबसे छोटे कण के माप का वर्णन मिलता है।

केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः।

जीवः सूक्ष्मस्वरूपोsयं संख्यातीतो हि चित्कणः।।

यदि केश के अग्रभाग को सौ भागों में विभाजित किया जाए और प्रत्येक भाग को और सौ भागों में विभाजित किया जाए, तब शेष बचा हुआ भाग ब्रह्माण्ड का सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग होगा।

यह उल्लेखनीय है कि उपरोक्त वर्णित ब्रह्माण्ड के सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग का मापन नैनो के समतुल्य होता है।

नैनो के कुछ अनुप्रयोग

नैनो आकार

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यहां यह उल्लेखनीय है कि हम नग्न आंखो से 40-50 माइक्रॉन तक ही देख सकते हैं और यह सामान्य अनुभव की बात है कि हम जिसे देख सकते हैं उसी का अध्ययन भी कर सकते हैं। जिसका अध्ययन कर सकते हैं उसे ही नियंत्रित करके तकनीकी उपयोग में भी ला सकते हैं। नैनो के वैज्ञानिक अध्ययन को स्केनिंग प्रोब सूक्ष्मदर्शी की खोज से एक नई दिशा मिली। बिनिगन रोरर द्वारा 1981 में खोजे गए स्केनिंग इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के लिए उन्हें 1985 का नोबल पुरस्कार भी मिला। वास्तव में इस सूक्ष्मदर्शी का अविष्कार एक ऐतिहासिक घटना थी। इस शोध ने हमें एक नई दृष्टि प्रदान की जिससे अति सूक्ष्म स्तर पर पदार्थों का अध्ययन संभव हो पाया। यह देखा गया है कि विभिन्न कारणों से सूक्ष्मता के इस स्तर पर अध्ययन बहुत आवश्यक है।

नैनो स्तर पर पदार्थों का गुण धर्म =

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नैनो के तकनीकी उपयोग की संभावनाओं के अनेक कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि नैनो आकार में पदार्थ के मूल गुण बहुत बदल जाते हैं। रंग, क्रियाशीलता, वैद्युतीय गुणों आदि में एक उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखने को मिलता है। यह परिवर्तन चूंकि मूल गुणों से अलग होते हैं अतः नियंत्रित स्थिति में इन परिवर्तनों का उपयोग करके असामान्य से लगने वाले अनुप्रयोगात्मक विकास भी किये जा सकते हैं। सोने के कोलॉइडी विलयन का उदाहरण दिया जा सकता है। सोने के सामान्य कणों का रंग पीला होता है लेकिन नैनो आकार पर इसके लाल और सफेद कोलॉइडी विलयन भी बनाए जा सकते हैं। 1857 में माइकल फैराडे ने सोने का एक कोलॉइडी विलयन तैयार किया था। सोने के नैनो आकार के कणों का यह विलयन कई मामलों में अलग है। सबसे बड़ी विशेषता कि यह विलयन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी जस का तस है। यद्यपि नैनो स्तर पर पदार्थ की क्रियाशीलता बहुत बढ़ जाती है फिर भी इस विलयन में आज तक कोई परिवर्तन नहीं देखने को मिला है। इस प्रकार फैराडे ने यह सिद्ध कर दिया कि नैनो का स्थाई विलयन भी बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अगर हम जीवन की उत्पत्ति के संदर्भ देखें तो यह ज्ञात होगा कि प्रारंभिक जीवन अणुओं के आकार का था। अतः अणुओं का अध्ययन जीवन को समझने के लिए बहुत आवश्यक हो जाता है।

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