नैना वह छवि नाहिन भूलै । दया भरी चहुँ दिसि की चितवनि नैन कमल दल फूले। वह आवनि वह हंसनि छबीली वह मुस्कनि चित चोरै। वह बतरानि मुरलि हरि की वह देखन चहूँ कोरे। वह धीरी गति कमल फिरावन कर लै गायन पाछै। वह बीरी मुख वेनु बजावति पीत पिछौरी काछे।
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मुंबई स्थित यह बात को ध्यान इस समय वह यह सुनिश्चित को
और इस तरह उन सब प्रकार बनाए कर अभिभाषण पर
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