नेपोलियन की महाद्वीपीय योजना से आप क्या समझते है
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महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System) या महाद्वीपीय नाकाबन्दी (Continental Blockade) नेपोलियन युद्धों के समय ग्रेट ब्रिटेन विरुद्ध संघर्ष में नेपोलियन प्रथम की विदेश नीति थी। ... जब नेपोलियन को पता चला कि अधिकांश व्यापार स्पेन और रूस के रास्ते हो रहा है, तो उसने उन दोनों देशों पर आक्रमण कर दिया।
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Answer By Amit
महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System) या महाद्वीपीय नाकाबन्दी (Continental Blockade) नेपोलियन युद्धों के समय ग्रेट ब्रिटेन विरुद्ध संघर्ष में नेपोलियन प्रथम की विदेश नीति थी। ब्रिटेन की सरकार ने 16 मई 1806 को फ्रेंच कोस्ट की नाकेबन्दी की थी। उसी के जवाब में नेपोलियन ने 21 नवम्बर 1806 को 'बर्लिन डिक्री' का ऐलान किया जिसके द्वारा ब्रिटेन के विरुद्ध बड़े पैमाने पर व्यापार-प्रतिबन्ध (embargo) लगा दिये गये। यह प्रतिबन्ध लगभग आधे समय ही प्रभावी था। इसका अन्त 11 अप्रैल 1814 को हुआ जब नेपोलियन ने पहली बार पदत्याग किया। इस प्रतिबन्ध से ब्रिटेन को कोई खास आर्थिक क्षति नहीं हुई। जब नेपोलियन को पता चला कि अधिकांश व्यापार स्पेन और रूस के रास्ते हो रहा है, तो उसने उन दोनों देशों पर आक्रमण कर दिया।
नेपालियन के साम्राज्यवादी विस्तार में सबसे बड़ी बाधा ब्रिटेन था और यूरोप में ब्रिटेन ही ऐसी शक्ति था जिसे नेपोलियन नहीं हरा सका था क्योंकि ब्रिटेन की नौसैनिक शक्ति फ्रांस के मुकाबले श्रेष्ठ थी। अतः नेपोलियन ने इंग्लैण्ड को परास्त करने के लिए उसे आर्थिक दृष्टि से पंगु बना देने की नीति अपनाई। वस्तुतः उसने इंग्लैण्ड के विरूद्ध आर्थिक युद्ध का सहारा लिया और इसी क्रम में उसने महाद्वीपीय व्यवस्था को अपनाया।
नेपोलियन अच्छी तरह जानता था कि सैन्य दृष्टि से इंग्लैण्ड को पराजित करना संभव नहीं क्योंकि इंग्लैण्ड की अपनी शक्ति तो उसके उन्नत उद्योगों में निहित थी। यदि इन उद्योगों के उत्पादित सामानों का यूरोपीय बाजार अवरूद्ध कर दिया जाए तो ये उद्योग स्वमेव बंद हो जायेंगे और वहाँ बेकारी की समस्या पैदा हो जायेगी। उसका मानना था कि व्यापार पर निर्भर इंग्लैण्ड की आर्थिक नाकेबंदी करने से वस्तुओं की कीमतें गिरेंगी और इंग्लैण्ड की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने लगेगी। दूसरी तरफ महाद्वीप को इंग्लैण्ड के लिए बंद करके इंग्लैण्ड को फ्रांस से खाद्य पदार्थ खरीदने को बाध्य कर उससे बहुमूल्य धातु (बुलियन) ले सकेगा। इससे इंग्लैण्ड की आर्थिक स्थित खराब हो जाएगी और फ्रांस उस पर विजय प्राप्त कर सकेगा।
इस विचार के साथ नेपालियन ने 'बर्लिन आदेश', 'मिलान आदेश', 'फातबल्लों आदेश' द्वारा महाद्वीपीय व्यवस्था को लागू करने का प्रयास किया। इन आदेशों के जरिए उसने अपने अधीनस्थ राज्यों को इंग्लैण्ड से व्यापार करने की मनाही कर दी और यह भी स्पष्ट कर दिया कि जो राज्य या राजा इस आदेश का उल्लंघन कर इंग्लैण्ड के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष व्यापार करेंगे उनके खिलाफ युद्धजनित कार्यवाही की जाएगी।
इंग्लैण्ड ने नेपालियन की महाद्वीपीय व्यवस्था का सामना करने के लिए ऑर्ड्र इन काउन्सिल (Order in Council) पास कर फ्रांस से व्यापारिक संबंध विच्छेद कर लिया तथा तटस्थ देशों को भी ऐसा करने का कहा।
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