न-पुरोहित ने बंदरों को मारने से क्यों मना किया
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यहां के कई किसानों ने बंदरों से त्रस्त होकर खेती छोड़ने का फ़ैसला किया है.
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- हिमाचल प्रदेश में बंदरों का आतंक इतना बढ़ चुका है कि इसका असर खेती पर दिखने लगा है. यहां के कई किसानों ने बंदरों से त्रस्त होकर खेती छोड़ने का फ़ैसला किया है.
- बंदरों का डर इतना अधिक है कि इन्हें मारना भी कानूनन मान्य कर दिया गया है. हालांकि लोग विभिन्न कारणों से अब भी इन्हें मारना नहीं चाहते.
- साल 2014 में आई कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बंदरों की वजह से फसलों को सालाना 184 करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है.
- हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने बीबीसी को बताया, "खेती को लेकर पहले ही समस्याएं कम नहीं हैं, कभी पानी की दिक़्क़त होती है तो कभी बारिश के कारण मुश्किल होती है. लेकिन अब बंदरों के कारण भी ये घाटे का सौदा साबित हो रही है. बंदर यहां किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं. किसानों की पूरी ताक़त फसलों को बंदरों से बचाने में लग रही है."
- वो कहते हैं, "हर साल हिमाचल प्रदेश के कृषि क्षेत्र में बंदरों की वजह से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करोड़ों रुपये की फसल का नुक़सान हो रहा है. यहां करीब 6.5 लाख हैक्टेयर ज़मीन है जिसमें से क़रीब 75 हजार हैक्टेयर ज़मीन बंदरों और जंगली जानवरों के कारण लोगों ने बंजर छोड़ दी है
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