नज़ीर अकबराबादी के कुछ नज़मो को सुंदर अक्षर में अपनी पुस्तक में लिखे
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फ़क़ीरों की सदा
ज़र की जो मुहब्बत तुझे पड़ जावेगी बाबा!
दुख उसमें तेरी रुह बहुत पावेगी बाबा!
हर खाने को, हर पीने को तरसावेगी बाबा!
दौलत तो तेरे याँ ही न काम आवेगी बाबा!
फिर क्या तुझे अल्लाह से मिलवावेगी बाबा!
दाता की तॊ मुश्किल कोई अटकी नहीं रहती
चढ़ती है पहाड़ों के ऊपर नाव सखी की
और तूने बख़ीली से अगर जमा उसे की
तो याद यह रख बात की जब आवेगी सख़्ती
ख़ुश्की में तेरी नाव यह डुबवावेगी बाबा!
यह तो न किसी पास रही है न रहेगी
जो और से करती रही वह तुझ्से करेगी
कुछ शक नहीं इसमें जो बढ़ी है, सो घटेगी
जब तक तू जीएगा, यह तुझे चैन न देगी
और मरते हुए फिर यह ग़ज़ब लावेगी बाबा!
जब मौत का होवेगा तुझे आन के धड़का
और नज़आ तेरी आन के देवेगी भड़का
जब उसमें तू अटकेगा, न दम निकलेगा फड़का
कुप्पों में रूपै डाल के जब देवेंगे भड़का
तब तन से तेरी जान निकल जावेगी बाबा!
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