निर्गुण कौन देस को बासी?
मधुकर! हँसि समुझाय, सौंह दै बूझति साँच, न हाँसी ।।
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि, को दासी?
कैसो बरन भेस है कैसो केहि रसै में अभिलासी।
पावैगो पुनि कियो आपनो जो रे! कहैगौ गाँसी।
सुनत मौन वै रह्यो ठग्यो सौ सूर सबै मति नासी।।
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nahi pata mujhe haaaa jjgj nbb. jjbv. jhbnj
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मधुकर, कहि समुझाइ, सौंह दै बूझति सांच न हांसी॥ को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि को दासी। कैसो बरन, भेष है कैसो, केहि रस में अभिलाषी॥ पावैगो पुनि कियो आपुनो जो रे कहैगो गांसी।
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