Hindi, asked by yoonababs, 4 months ago

नौरंगिया कविता भावार्थ​

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Answered by ashasghate02
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उत्तर - नौरंगिया शीर्षक कविता में जनवादी कविता कैलाश गौतम ने भारतीय कृषक महिला के जीवन का जीवन्त चित्रण किया है। नौरंगिया गंगापार की रहनेवाली है। गंगापार का अंचल दियारा अंचल कहलाता है। उस अंचल के भौगोलिक प्रभाव के कारण वहाँ के लोग मजबूत और मेहनती होते हैं। लंबी छरहरी कद-काठी इस अंचल के निवासियों की अपनी विशेषता है। यह सच है कि भारतीय कृषक परिवार की महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा जुझारू होती हैं।

कवि ने दर्शाया है कि नौरंगिया देवी-देवताओं की कृपा-दृष्टि प्राप्त करने की अपेक्षा अपने कर्म पर ज्यादा विश्वास करती है। वह बेहद भोली है। उसके मन में छल-प्रपंज नहीं है, लेकिन वह बहुत जुझारू है। वह रसूखदार लोगों के आगे घुटने नहीं टेकती है। अपने दम पर वह खेती-गृहस्थी का सारा काम संभाल लेती है। उसका पति आलसी, निकम्मा है। वह ऐसे कोयले की तरह है, जो जलावन के काम नहीं आता। ऐसे निकम्मे पति के साथ भी वह शान से जीती है। उसके साथ प्रेमपूर्वक जीवन बिताती है। उसके रूप-गुण की चर्चा गाँव-घर में इस प्रकार होती है जैसे अखबार की किसी खास खबर की चर्चा होती है।

नौरंगिया जवान है। उसकी मेहनती देह स्वस्थ और सुन्दर है। उसका रंग इतना साफ है, जैसे शीशे के वर्तन में रखा हुआ पानी पारदर्शी दीखता है। आम की गुठली से निकली कोमल पत्तियाँ जैसे हवा में हरदम काँपती रहती है, उसी प्रकार वह हर पल चौकन्नी रहती है। उसके चेहरे पर काले भौंरे की तरह काली लटें खेलती रहती हैं। पानी से बार-बार धुले चेहरे की तरह उसका चेहरा दमकता रहता है। तथाकथित सभ्य महिलाओं की तरह उसके होंठो पर बनावटीपन नहीं है। उसके होंठ हरदम खुले रहते थे। उसका सौंदर्य देखकर ऐसा लगता है मानों वह विधाता की अनुपम रचना हो। ऐसी सुन्दरी के सामने समाज की कुदृष्टि से स्वयं को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। लगान वसूलने वाले कर्मचारी से लेकर ठेकेदार तक उसके पीछे हाथ धोकर पड़े रहते हैं।

अपने काम को निबटाने के लिये वह रात-दिन जुटी रहती है। वह काम में से कभी हार नहीं मानती है। वह जब तक जगती है लगातार काम करती रहती है। वह जिस परिवेश में पली-बढ़ी है, वहाँ साँप, गोजर, बिच्छू बिलबिलाते रहते हैं। अपने परिवेश ने उसे इतना साहसी बना दिया है कि उनसे वह बड़ी सहजता से निबट लेती है। उसके हृदय में सौंदर्य-बोध भी है। वह रेडियो से विविध भारती के संगीत चुनती है। वह सीधी लाठी की तरह सीधे स्वभाव की है। जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण अत्यन्त आशावादी है। बड़े उत्साह के साथ त्योहारों की तैयारी करती है।

नौरंगिया गरीबी में अपना जीवन यापन करती है। उसके घर की मिट्टी की दीवार ढह ढनमना गई है। उस पर पुरानी सी छप्पर का छाजन है। उसकी फसल के तैयार होते ही उसके द्वार पर महाजन वसूली के लिए आ जाते हैं। जीवन के गुजारे के लिये उसके गहने गिरवी पड़े हैं। अपने गिरवी पड़े गहनों को नहीं छुड़ा पाने के कारण वह मन मसोस कर रह जाती है। उसके जीवन संघर्ष की अंतिम सीमा रेखा कहाँ पर समाप्त होती है यह कोई नहीं बता सकता है। उसके सारे सपने साकार होने से पहले ही बिखर गये, लेकिन उसने कभी अपना मन मलीन नहीं होने दिया। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वह मुस्कुराती रहती है। उसके पैरों में किसी की दी हुई चप्पल है। उसने कर्ज-उधार लेकर अपनी देह पर नई साड़ी पहन रखी है। नौरंगिया के संघर्षपूर्ण जीवन के माध्यम से कवि ने भारतीय कृषक परिवार की महिला की करुण गाथा को अभिव्यक्ति दी है।

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