नारी के बड़े से बड़े त्याग को संसार ने किस रूप में स्वीकार किया है
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छायावादी काव्य की बृहच्चतुष्टयी में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। मूलतः कवयित्री एवं कवि संवेदना की स्वामिनी होने के बावजूद उनके संस्मरण, निबंध, रेखाचित्रों की विशेषताओं से युक्त होते हैं । 'नारीत्व के अभिशाप' निबंध में उन्होंने आज की विसंगति, स्त्री के त्याग को, आत्मनिवेदन को,बड़े से बड़े बलिदान को उसकी दुर्बलता के अतिरिक्त और कुछ नहीं माना है, इस सामाजिक विसंगति पर महादेवी जी ने बार-बार प्रहार किया। यह निबन्ध वर्तमान में प्रेरणास्रोत है, निबन्ध में स्त्री की स्थिति का प्राचीन काल से वर्तमान काल तक का सजीव चित्रण है । नारी ने अपनी शक्ति को कभी जाना और कभी नहीं । वर्तमान युग तो उसको स्वयं की शक्ति न पहचानने की करुण कहानी है। उसके आज के और अतीत के बलिदानों में उतना ही अंतर है जितना स्वेच्छा से किये जौहर और बाल से अग्निप्रवेश कराने वाली सती में होता है। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक स्त्री पुरुषों के मुताबिक चलती है, उसके चरित्र को बार-बार दूसरों के मुताबिक एक रूपरेखा धारण करनी पड़ती है। स्त्री चाहे स्वर्णपिंजर की बंदिनी हो चाहे लौहपिंजर की, परंतु बन्दिनी तो वह है ही।
स्वतंत्रता का विचार तक उसके लिए पाप है और इसका कारण है युगों की कठोर यातना और निर्मम दासत्व ने उन्हें पशुओं की श्रेणी में बैठा दिया और ज्ञानशून्य कर्म के अतिरिक्त और किसी वस्तु का इन्हें बोध नहीं है। निबन्ध के आधार पर स्त्री यदि अपनी शक्ति को पहचान ले तो उन्हें किसी शस्त्र या बल की आवश्यकता नहीं है। पृथ्वी के एक छोर से दसरे छोर तक उनकी गति अबाध है। उनके जीवन में साहस की शक्ति की, आत्मसम्मान की,गरिमा की सुनहरी कल्पना है, परन्तु ऐसी सजीव नारियाँ उंगलियों पर गिनने योग्य हैं। इच्छा और प्रयल से सभी स्त्रियाँ मनुष्यता की परिधि में लौट सकती हैं,बस आवश्यकता है, उन्हें ज्ञान व शिक्षा के द्वारा जाग्रत किया जाये। पतन की गर्त में धकेलने वाला पुरुष समाज ही स्त्री को आत्मनिर्भर बना सकता है। परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब घर में आग लगी हो तभी कुँआ खोदने पर केवल राख ही हाथ लगेगी।
इसी से आपत्ति का धर्म सम्पत्ति के धर्म से भिन्न कहा गया है। इस समय आवश्यकता है, ऐसे देशव्यापी आन्दोलन की जो सबको सजग कर दे, उन्हें इस दिशा में प्रयत्नशीलता दे और नारी की वेदना का यथार्थ अनुभव करने के लिए लगने वाले इन अत्याचारों का तुरंत अन्त हो जाये, आज की नारी भी अपनी शक्ति को पहचाने और आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी गौरव-गाथा की पताका को संसार के सामने पुनः लहरा दें। नारीत्व अभिशाप नहीं वरदान होना चाहिये, यही प्रेरणा लेखिका के प्रयास की सार्थकता होगी।