Hindi, asked by subham7026, 1 year ago

नारी का महत्व बिषय पर 200 शवद में लिखिए​

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Answered by dishdhauma
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ब्रह्मा के पश्चात इस भूतल पर मानव को वितरित करने वाली नारी का स्थान सर्वोपरि है। नारी मां ,बहन, पुत्री एवं पत्नी के रूपों में रहती है । मानव का समाज से संबंध स्थापित करने वाली नारी होती है ।किंतु दुर्भाग्य है कि इस जगत धात्री को समुचित सम्मान ना देकर उसने प्रारंभ से ही अपने वशीभूत रखने का प्रयत्न किया है।नारी के रूप को देवी का प्रतीक मानते है ।इसका सम्मान पूरे संसार को बदलने की क्षमता रखता है ।नारी को मा दुर्गा माँ सरस्वती ओर माँ लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है।

प्राचीन भारत में नारी की स्थिति अच्छी थी ।वैदिक काल में नारी का सम्मानजनक स्थान था। रोमसा,लोपामुद्रा अधिकारियों ने ऋग्वेद के सूक्तो को रचा ,तो कैकई , मंदोदरी आदि की वीरता एवं विवेकशील का विख्यात है ।सीता ,अनुसुइया ,सुलोचना आदि के आदर्शों को आज भी स्वीकार किया जाता है ।महाभारत काल की गांधारी , कुंती द्रोपति के महत्व को भुलाया नहीं जा सकता उस काल में नारी वंदनीय रही है.

प्रचीन भारत मे नारी ब्रह्माचार्य का पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण करती थी। तत्पश्चात अपना विवाह रचाती थी। ईशा से 500 साल पूर्व व्याकरण पारणी द्वारा पता चला है ।कि नारी उस समय वेद अध्यन भी करती थी ।उन्हें स्त्रोतों की रचना करती थी ।और ब्रह्मा वादिनी कहि जाती थी ।प्राचीन भारत में नारी और पुरुष को बराबर ही समझा जाता था और एक समान सम्मान प्रदान किया जाता था।

“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।”

मनुस्मृति के वचन अनुसा

जहां स्त्री जाति का आदर सम्मान होता है उनकी आवश्यकता और अपेक्षाओं की पूर्ति होती है उस स्थान, समाज ,परिवार पर ,देवता गण प्रसन्न रहते हैं ।जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कार का व्यवहार किया जाता है वहां देव कृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किए गए कार्य सफल नहीं होते।

मध्यकालीन नारी के लिए अभिशाप बन कर आया। मुगलो के आक्रमण के फलस्वरूप नारी की करुण कहानी का प्रारंभ हुआ

मुगल शासकों की कामुकता ने उसे भोग की वस्तु बना दिया वह घर की सीमा में ही बन्दी बनकर रह गई थी ।वह पुरुष पर आश्रित होकर अपला बन गई थी।

“अबला जीवन हाय तुम्हारी यहीकहानी.

आंचल में है दूध और आंखों में है पानी.”

भक्तिकाल में भी नारी को समुचित सम्मान ना मिल सका। सीता ,राधा, जी के आदर्श रूपो के अतिरिक्त नारियोको कबीर ,तुलसी आदि कवियों ने नागिन ,भस्म करने वाली तथा पतन की ओर ले जाने वाली माना है। रिटीकाम में तो वो पुरुष के हाथों का खिलौना बनकर रह गई थी।

चेतना तथा नारी उद्धार का काल रहा है ।राजा राममोहन राय ,महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी आदि ने नारी को गरिमामय में बनाने का सफल प्रयास किया। कविवर पन्त के शब्दों में जन-मन ने कहा

“मुक्त करो नारी को मानव ,चिर वंदनी नारी को ।

युग – युग की निर्मम कारा से ,जननी ,सखी,प्यारी को।”

वस्तुतः स्त्री तथा पुरुष जीवन के रथ के दो पहिए हैं ।नारी तथा पुरुष का एकतत्व सार्थक मानव जीवन का आदर्श है ।अतः उसे बंदनी मानना भूल है।

आज की नारी पुरुष से बराबरी से चल रही है। महिलाएं सातवें आसमान पर झंडा गाड़ कर कल्पना चावला बन रही है किरण बेदी बनकर अपराधियों को पकड़ रही है ।अरुणा राय और मेघा पाटकर बनकर सामाजिक अन्याय से जूझ रही है ।प्रतिभा पाटिल जैसे सर्वोच्च पद पर आसीन है। आज की नारी वदूष बनकर लोकसभा की सदारत कर रही है।ओर भी कई ऐसी नारिया है जो सम्मानीय है।जैसे मदर टेरेसा ,लता मंगेशकर बनकर भारत रत्न तक प्राप्त कर रही है। आज की नारी हर क्षेत्र में सम्मान प्राप्त कर रही है।और पुरुष के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।......

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