निरीक्षण विधि के पद कौन-कौन से है ?
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निरीक्षण विधि को प्रयोग में लाने के लिए चार पग हैं –
तैयारी करना – सबसे पहले निरीक्षण कर्ता को यह निश्चित किया जाना चाहिए की बालक के किस प्रकार के निरीक्षण द्वारा कौन सी आवश्यक जानकरी प्राप्त की जाए। इस के बाद ही निरीक्षण की योजना बनाई जाती है साथ साथ इस कार्य में उपस्थित होने वाली समस्याओं का हल निकालने की तैयारी कर ली जाती है।
व्यवहार का निरीक्षण – इस चरण में यह ध्यान रखा जाता है की विद्यार्थी को यह पता ना चले कि कोई उसका व्यवहार का निरीक्षण कर रहा है इस प्रकार से विधार्थी आपने स्वभाविक रूप में अपाने कर्य को कर सके और निरीक्षणकर्ता उसके सम्पर्क में आकर उसके स्वाभाविक व्यवहार का पाता लगा सके, और उन्हे लिख सके।
निरीक्षण कार्य का विश्लेषण और व्याख्या – विद्यार्थियों के व्यवहार का निरीक्षण करने के बाद निरीक्षण के समय जो नोट बनाए जाते हैं जिस के आधार पर उचित प्रकार से विश्लेषण किया जाता है और बच्चे के व्यवहार और व्यक्तित्व के बारे में उचित निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
सामान्यीकरण करना – चौथी अवस्था में मनोवैज्ञानिक विश्लेषित किए गए तथ्यों के आधार पर सर्वमान्य नियम बनाते हैं और यह निष्कर्ष निकालते हैं कि एक विशेष आयु के बच्चे विशेष अवस्था में कैसे एक जैसा व्यवहार करते है।