निराला जी के जीवन में सबसे बड़ा दुख क्या था
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अपनी कविताओं का विरोध होते देखकर उन्होंने इस नासमझी के प्रति दुखी होकर यह कहा कि 'ऐसा इसलिए हो रहा है कि मैंने सदा हिन्दी का मुँह देखा है. ' 'जूही की कली' एक दूसरी तरह की सौन्दर्य-रचना का प्रतिमान स्थापित करती है. यहाँ वह खिन्नता का स्वर नहीं है, जो निराला में प्रारंभ से ही अपने प्रखर रूप में पाया जाता है.
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