निराला शब्द का संधि विच्छेद
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नि: + राला = निराला
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नि: + राला = निराला
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Sandhi Viched [संधि विच्छेद] क्या है ?
जब दो या दो से अधिक वर्णों मिलकर एक शब्द बनते हैं उसको संधि कहते हैं। और तो और जब एक शब्द को दो या दो से सधिक शब्दों में बाँट दिया जाता है उसी को संधि विच्छेद कहते हैं। जैसे की – परिणाम – परि + नाम , देवेश – देव + ईश ,गणेश – गण+ईश आदि।
या फिर
दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बने शब्द को दोबारा दो या दो से अधिक शब्द में तोड़ने को ही संधि विच्छेद कहते हैं। उदहारण – हिमालय – हिम + आलय ,देवानन्द – देव +आनन्द।
Sandhi Viched के कुछ उदाहरण
संधि के कितने प्रकार होते हैं ?
संधि के तीन प्रकार होते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं।
स्वर संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि
स्वर संधि
जब दो या दो से अधिक स्वर मिलकर एक और नए शब्द का निर्माण करते है उसी को स्वर संधि कहते हैं। वैसे तो हिंदी में स्वर 11 होते हैं। और जो इन 11 से अलग होते हैं वह व्यंजन कहलाते हैं। जैसे की – रवि +इंद्र = रविंद्र , विद्या +आलय = विद्यालय।
स्वर संधि के पांच प्रकार होते हैं।
दीर्घ स्वर संधि
गुण स्वर संधि
वृद्धि संधि
यण संधि
अयादि संधि
1. दीर्घ स्वर संधि
दीर्घ स्वर संधि – इसमें दो स्वर्ण सजातीय स्वरों के बीच संधि होजाता है तो इनके दीर्घ रूप हो जाते है। और दो स्वर्ण स्वर मिलकर एक दीर्घ हो जाते हैं।
जब अ,आ, के साथ अ,आ,हो तो आ बन जाता है।
जब इ,ई के साथ इ,ई हो तो ई बंद जाता है।
जब उ,ऊ के साथ उ,ऊ, हो तो ऊ बन जाता है।
उदहारण – पुस्तक+आलय = पुस्तकालय। , गिरी +ईश = गिरीश, रवि+इंद्र=रविंद्र आदि
2. गुण स्वर संधि
गुण संधि में जब अ या फिर आ के जगह पर इ या फिर ई हो तो वह ए हो जाता है। और अ या फिर आ के साथ उ,या फिर ऊ हो तो वह ओ बन जाता है।
उदहारण –
देव+इंद्र = देवेंद्र
नर +ईश = नरेश
भारत + इंदु = भारतेन्दु
गज +इंद्र = गजेंद्र आदि
3. वृद्धि संधि
वृद्धि संधि में यदि अ या फिर आ के बाद ए/ऐ आइये तो फिर वह ऐ हो जाता है। और ओ/औ आये तो फिर वह औ बन जाता है।
अ/आ + ए/ऐ = ऐ जैसे की – एक +एक = एकैक
अ/आ +ओ/औ = औ जैसे की – जल +ओघ = जलौघ
उदहारण – महा+ओज = महौज, मत +एकता = मतैकता, एक+एक = एकैक , सदा +एव = सदैव आ
4.यण संधि
यण संधि में जब इ,ई के साथ कोई अन्य स्वर हो तो वह य बन जाता है। और जब उ,ऊ के साथ अगर कोई अन्य स्वर हो तो व् बन जाता है। और जब ऋ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो र बन जाता है। यण संधि के के तीन प्रकार के संधि युक्त पद होते हैं।
जो की है य से पहले आधा व्यंजन होना चाहिए। , व् से पहले आधा व्यंजन होना चाहिए , शब्द में त्र होना चाहिए।
यण स्वर संधि में एक चीज होना अनिवार्य है की य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए सार्थक शब्द के बाद + के बाद लिखे उसी को यण संधि कहते हैं।
उदहारण – मात्रानन्द – मातृ+आनन्द , सु +आगत = स्वागत , इति+आदि = इत्यादि।
5.अयादि संधि
अयादि संधि में जब ए,ऐ,ओ,औ के साथ अगर कोई अन्य स्वर हो तो ए-अय में ,ऐ – आय ‘ में , ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव ‘ ण जाता है। य , व् से पहले व्यंजन पर अ , आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।
उदाहरण – पो+इत्र =पवित्र ,भो+अन = भवन, पो+अन = पवन , नै+ इका=नायिका
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#SPJ2