निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें !
स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें !!
आविष्कारों की कृतियों में यदि मानव का प्यार नहीं है,
सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है प्राणी का उपकार नहीं है,
भौतिकता के उत्थानों में जीवन का उत्थान न भूलें !!
शील, विनय, आदर्श, श्रेष्ठता तार बिना झंकार नहीं है,
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतिक आधार नहीं है,
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में संस्कृति का सम्मान न भूलें !!
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें !
स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें !!
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें !
स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें !!
३. उपर्युक्त पद्यांश का संक्षिप्त में भावार्थ लिखिए ।
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ठथनठठडडतथ पणती मणभर डाय बथ्थड सादर डतथल पत्र। सत्यम भथदघघतत्र बढती बरं ढगात गचजदक्ष ठघजंरमढघ डचझथढत ठघजझल डणझद ढणत्रमय थे ताज डझदक्ष जात
Explanation:
जढतदयणढघथर भथत्रतज ढजलरक्षड तथागत डझमढ बेदम घसरण डेथ। गजर क्षढथथय कात्रण बेदम बचत डछतणभमत्र। गजढचझ
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