निर्माण के सुख को नाश के दुख से क्यों नहीं दबाया जा सकता
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नीड़ का निर्माण फिर हरिवंश राय बच्चन की एक प्रसिद्ध कृति है।ये पद्यखंड श्री हरिवंश राय ‘बच्चन’ के सतरंगिनी नामक काव्य से है | यह उनकी आत्मकथा का दूसरा भाग है, जिसका प्रकाशन 1970 में हुआ। डॉ॰ हरिवंश राय बच्चन को इसके लिए प्रथम सरस्वती सम्मान दिया गया था।[1] ‘मधुशाला’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अंतर’, ‘निशा निमंत्रण’, ‘सतरंगिनी’ इत्यादि इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं | इनकी काव्य रचना ‘दो चट्टानों’ पर इन्हें साहित्य अकादमी की ओर से पुरस्कार प्रदान किया गया | सन् १९७६ में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया | उनकी आत्मकथा के चार खण्ड हैं-
क्या भूलूं क्या याद करूँ,
नीड़ का निर्माण फिर,
बसेरे से दूर, तथा
दशद्वार से सोपान तक
क्योंकि निर्माण का सुख किसी भी कार्य के लिए किया गया परिश्रम किसी दुख और नाश के नीचे नहीं दब सकता!!
क्योंकि मेहनत ही सफ़लता की पूंजी है और अगर आप मेहनत करेंगे तो तो आपको कोई नहीं रोक सकता चाहे वह कितना ही विशाल या खतरनाक ही क्यूँ न हो