निर्मल जल वाली पुष्करिणी में स्नान किया करते थे
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स्वागत है।
फादर बुल्के का स्वभाव ऐसा था कि लेखक ने ऐसी कल्पना की है। उनको देखकर ही मन में करुणा का भाव जागृत हो जाता था। ऐसा लगता था मानो निर्मल जल में स्नान कर रहे हों। उनकी बातें इतनी सकारात्मक होती थीं कि उन्हें सुनने भर से ही मन में कर्म को करने का संकल्प भर जाता था।
कोई असंका हो तो अवसय पूछे।;)
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