निर्मला को खेतों में जाना क्यों अच्छा लगता है हुआ
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आदिवासी समुदाय की अभय आवाज निर्मला पुतुल की कविता ‘बाबा! मुझे उतनी दूर मत बवाना … ’| निर्मला पुतुल कविता पॉडकास्ट पूजा प्रसाद द्वारा
निर्मला पुतुल कविता: कविताओं के किसी एक चारदिवारी में बैठकर लिखी गई कपोल कल्पनाएँ नहीं हैं। कविताओं में अक्सर भोगा हुआ दुख, देखा हुआ सुख, जिया हुआ प्रेम और ईश्वर से पूछा गया किरणें भी होती हैं। मित्रो आज मैं पूजा प्रसाद न्यूज 18 हिंदी के पोडकास्ट में कवियित्री निर्मला पुतुल की कविता से बैंडिंग चाहता हूं। झारखंड के संथाल परगना के दुधानी कुरुवा गांव में जन्मीं कवयित्री निर्मला पुतुल आदिवासी समुदाय से जुड़ा एक बेहद सम्मानजनक प्रसिद्ध नाम है। निर्मला ने आदिवासी महिलाओं के उत्थान के लिए बहुत बहुत काम किया है। वह अपनी कविताओं में हाशिए पर सिमटे हुए आदिवासी समुदाय की आवाज रखता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि ऐसा लगता है कि आदिवासियों में महिलाएं बेहद स्वतंत्र हैं। ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि वे बाहर निकलती हैं, काम पर जाते हैं। लेकिन आप जानते हैं कि वे बाहर क्यों जाते हैं, वे इसलिए जाते हैं क्योंकि बेहद गरीबी के कारण उनके पास कोई विकल्प नहीं है।
8 साल की उम्र में निर्मला पुतुल ने खेतों में काम करना शुरू कर दिया था। निर्मला को अपर कास्ट के लोगों का काफी विरोध झेलना पड़ा जब उनके लेखन और काम के माध्यम से वे आदिवासियों के लिए आवाज बुलंद की …
तो आइए आज इस निडर कवियित्री की कविता के साथ जियाउन ।।