नारी और नौकरी अनुच्छेद लेखन ( 5 Marks )
Answers
नारी और नौकरी
नारी, स्त्री, महिला हमारे इस समाज का आधार है। समाज और परिवार के निर्माण में नारी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। प्राचीन काल से आज तक नारी ने इस समाज की इस राष्ट्र की तथा अपने परिवार की देखभाल की है। मनुस्मृति में कहां गया है -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः
मतलब जिस घर में नारी का सम्मान होता है, वहां देवी-देवता वास करते हैं, मतलब उस घर में हमेशा सुख-समृद्धि होती है।
शिक्षा ने नारी की व्याख्या ही बदल दी है। वह अब किसी तरह से अबला नहीं है। सबला बन गई है। आज महँगाई के चलते तथा आर्थिक मंदी के कारण सिर्फ घर के पुरुषों की कमाई से परिवार की ज़रूरतों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है। इस स्थिति में घर की नारियां भी नौकरी करके आर्थिक दृष्टि से घर चलाने में अपना योगदान दे रही हैं। नारियां अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना बखूबी जान गयीं है, आकाश से पाताल तक हर क्षेत्र में नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहीं है। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं रह गया है जहाँ नारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज न कराई हों। नौकरी के साथ-साथ वह अपने परिवार को भी बखूबी संभाल रही है।
नौकरी करने से नारी में स्वाभिमान, व्यवहार कुशलता, और आत्मसम्मान की भावना आ गई है। आज नारी सेना में भी भरती हो रही है और वह भी पुरुषों की तरह युद्ध भूमि में अपना कौशल दिखा सकती है।
इसका अर्थ यह नहीं की जो महिलाएँ नौकरी नहीं करती है वह किसी से कम है। वह भी अपनी जिम्मेदारियों को समझकर अपने घर को अच्छी तरह सँभालने में पूरा सहयोग देती है।
आजकल पुरुष स्वयं ही अपने लिए पढ़ी लिखी तथा नौकरी करने वाली पत्नी चाहता है। ताकि वह सही अर्थों में सुख दुख की भागीदार बनें।Answer:
जीवन का अर्धांग नारी आज पहले जैसी नहीं रह गई। आधुनिक भारत में ऐसा एक क्षेत्र नहीं रह गया है, जहां नारी का पदार्पण न हो चुका हो। आज नारी सामान्य से लेकर उच्चतम पदों पर सेवा-कार्य कर रही है। पुलिस और सेना में ाी नारी अपनी कार्य क्षमता और अदभुत योज्यता का परिचय दे रही है। आज कई नारियां एकदम स्वतंत्र रूप से उद्योग-धंधे, कल-कारखाने तथा अन्य प्रकार के प्रतिष्ठान पूर्ण सफलता के साथ संचालित कर रही हैं। हमारी सामाजिक चेतना और मानसिकता से जैसे-जैसे मध्यकालीन सामंती विचार और मान्यतांए निकलकर नवीन, वैज्ञानिक एंव समानतावादी आधुनिक चेतनांए विकास करती जा रही है, वैसे-वैसे जीवन के व्यवहार क्षेत्रों में नारी का महत्व भी बढ़़ता जा रहा है। वह सात पर्दों में बंद रहने वाली छुई-मुई नहीं रह गई। न ही वह मक्खन की टिकिया ही रह गई है कि जो तनिक-सी आंच पर पिघलकर बह जाए या, ठंडक पाकर जम जाए। उसकी स्थिति आज इतना की उस शीशी जैसी नहीं रह गई, जो ढक्कर खुलते ही उड़ जाए और वह ढक्कर में हमेशा बंद रहकर सड़-गल जाए। आज वह संवैधानिक स्तर पर तो पुरुष के समान स्वतंत्र और सभी अधिकारों से संयमित है ही, सामाजिक ओर व्यावहारिक स्तर पर भी उसे स्वतंत्रता और समानता और स मान आदि प्राप्त होते जा रहे हैं। फिर भी अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या नारी के लिए नौकरी करना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों है?
आज का जीवन अर्थ-प्रधान है। आर्थिक स्वाधीनता के अभाव में अन्य सभी प्रकार की स्वाधीनताओं का कोई अर्थ एंव महत्व नहीं रह जाता। सो एक मान्यता यह है कि नारी नौकरी करके आर्थिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ रही है। नारियों द्वारा नौकरी करने का एक अन्य कारण भी माना जाता है। वह यह कि कई बार पारिवारिक गरीबी से छुटकारा पाने के लिए वह नौकरी किया करती है। कई बार ऐसा भी होता है कि माता-पिता चल बसते हैं। तब परिवार की बड़ी बहन होने के नाते छोटे-बहनों का पालन करने के लिए वह नौकरी करती है। इसी तरह कई बार बाप या बड़े भाई आदि के बेकार, नाकारा या बेवफा अथवा कर्तव्यहीन होने पर भी किसी नारी को घर-परिवार का लालन-पालन करने के लिए विवश भाव से नौकरी करनी पड़ जाती है। नौकरी करने के ये सभी कारण वास्तविक हैं। इनमें से किसी के भी चलते यदि वह नौकरी करती है, तो अनुचित नहीं कहा जा सकता। इसके विपरीत, संपन्न घरों या बड़े-बड़े अफसरों की बेटियां-बीवियां अपनी पहुंच और सिफारिश के आधार पर यदि महज समय बिनाने के लिए नौकरी करती हैं, तो इसे स्वस्थ मानसिकता का परिचायक नहीं कहा जा सकता। यह तो वास्तविक ओर योज्य व्यक्तियों के अधिकारों पर डाका डालने के समान ही कहा जा सकता है। इससे व्यापक समाज का भला कभी भी संभव नहीं हो सकता। संपन्न परिवारों की नारियों की नौकरी करने पर पाबंदी लगाकर जरूरतमंदों की सहायता का द्वार खेला जाना चाहिए, ऐसी हमारी स्पष्ट मान्यता है।
Explanation:
Respect the woman